भेड़िए का तख्ता पलट शेर की सरकार और कुत्तो का आतंक
संपादक की कलम से ….
बात कुछ 100 वर्ष पुरानी है जब कुछ भेड़ियों ने विदेशी लकड़बग्घों के साथ मिलकर देशी शेरों का शिकार कर लिया और जंगल के साम्राज्य पर अपना एकाधिकार रखने के लिए ये डुगी पिटवा दी कि सभी जानवरों को बकरियों के साथ उन्हीं के दायरे में रहना पड़ेगा तो सरकार उन्हें सभी सुविधाएं मुहैया कराएगी, हर बार निश्चित समय पर नया सरदार चुनने के लिए हर बकरी को एक – एक हड्डी देना अनिवार्य है ताकि मनमाफिक सरदार का चयन किया जा सके इसी तरह लगभग 70 साल तक भेड़ियों ने मन चाहा राज्य किया और बकरियों की संख्या बढाने के हर संभव प्रयास किए और साथ ही समुचित प्रबन्ध किए कि बकरियों की खाल में अन्य बकरी बने जानवरों को भविष्य में किसी भी समस्या का सामना न करना पड़े,इसके लिए सारे नियम कानून भी उन्हीं के हित में बनाए गए। लेकिन परमात्मा को कुछ और ही मंजूर था,एक दिन शेर जाति का शेरत्व जाग उठा तो उन्होंने दहाड़-दहाड़ कर समकक्ष जानवरों को बताया कि वो शेरों के समकक्ष है बकरी के नहीं, लेकिन काफी समय से बकरी बने अन्य जानवर इस बात को गलत ही मानते रहे तब शेरों ने अपनी सरकार बनाने का फैसला किया और एक लंबी लड़ाई के बाद एन केन प्रकारेण शेर अपनी सरकार बनाने में सफल हो गया बकरी बने अन्य जानवरों को भी समझ में आया कि जंगल केवल बकरी और भेड़ियों का नहीं शेरों का भी है, हाथियों का भी है, गधों का भी और हमारा राजा शेर ही होना चाहिए, क्योंकि वह हर तरह से हमें सुरक्षा प्रदान कर सकता है शेरों ने सरकार तो बना ली लेकिन भेड़ियों की सरकार ने न्याय व्यवस्था और प्रशासन व्यवस्था कुत्तों के हाथ में सौंपी उसे एकाएक कैसे बदला जाता ? संपूर्ण साम्राज्य में कुत्तों का ही बकरियों पर शासन था मनमानी करते कुत्ते बकरियों को लूट-लूट कर मोटे-मोटे शेरों के समान हो गए और शेरों के सामने मजबूरी ये थी कि जंगलराज का शासन,प्रशासन और न्याय व्यवस्था कुत्तों के हाथ में थी जिसे वो इतनी जल्दी बदल नही सकते थे,साथ ही साथ व्यक्तिगत रूप से सब पर नजर रखने वाले बंदर जिनका काम बकरियों की समस्याओं को उठाना था और व्यवस्था की खामियों को उजागर करना था वो पूरी तरह से कुत्तों के हाथों की कठपुतली थे क्योंकि पिछले 70 सालों से कुत्तों के द्वारा उन्हें चूसने को हड्डियां मिली थी तो वो भी कुत्तों की गुलामी करते थे जबकि लोमड़ियां न्याय व्यवस्था और बकरियों के बीच की एक कड़ी थी जो त्रस्त निरीह बकरियों से उनकी गाढ़ी कमाई लूट-लूट के सिर्फ अपना उदर पोषण ही नही करती थी बल्कि न्याय के ठेकेदारों की काली कमाई की मुख्य कारक भी थी इस प्रकार पूरा का पूरा तंत्र भी अराजकता के पंजों में जकड़ा हुआ था भेड़ियों की सरकार ने बकरियों को बरगलाने का काम बहुत ही समझदारी के साथ किया था जिससे बकरियों को एक बहुत बड़ा भ्रम था कि वे ही भेड़ियों के या कहे कि राज्य सत्ता के भाग्य विधाता थी,
शेर ने सरकार बनते ही कुत्तों को यह अधिकार दे दिया वे बिना दबाव के अपना काम कर सकते हैं जंगल की जनता के सुख में विघ्न डालने वाले किसी भी बाहरी या अंतर क्षेत्रीय अराजक तत्व किसी भी प्रकार से पनप न सके इसका फायदा कुत्तों ने जमके उठाया क्योंकि अराजक तत्वों के पास हड्डियों की बहुतायत थी इसलिए हड्डी के लालच में कुत्ते हड्डी वालों का काम करते रहे और बंदरों को भी हड्डी चूसने की आदत पड़ चुकी थी तो भी कुत्तों के सामने पूछ हिला-हिला के हड्डी चूसते रहें यह भूल ही गए वह जो हड्डियां चूस रहे हैं यह उन्हीं की हड्डियां है जिनके हित के लिए उन्होंने संकल्प लिया था शेरों की संख्या कम हो गई थी और बाघ चीता लकड़बग्घा और हाथी,ये सब भी अपनी शक्तियों से अनजान थे और बिना काम के भी थे, तो बकरियों की हड्डियां तोड़ते रहे, चूसते रहें, खाते रहे, पीते रहे और मौज उड़ाते रहे,कुत्तों को डर भी था कब बिगड़ जाए और ऐसी की तैसी भी कर दें तो बंदर ,लोमड़ी, कुत्ते सब इन्हीं की चमचागिरी करने लगे अब शेर मुश्किल में पड़ा क्योंकि मलाई ये सब मिलकर खाने लगे और शेर को यह खबर कर दी कि दूध देने वाले जानवरों ने दूध देने से मना कर दिया अब शेर को मठ्ठे से ही काम चलाना पड़ेगा शेर ने भी घोषणा कर दी मठठे में भांग मिलाकर जो मादक पेय तैयार किया गया था उसे राजकीय पेय घोषित कर दिया गया और जगह-जगह दुकानें खुलवा दी गई और उसपर भरी भरकम टैक्स लगाकर शेरों ने अपना खजाना भरना शुरू कर दिया चन्द शेरों ने सभी जानवरों के हितों को ध्यान में रखकर जंगल में पगडंडियां बनवाईं जगह-जगह ऊंचे चबूतरे बनवाए बहुत सारी योजनाएं बनाई लेकिन उनपर तो जैसे बंदर,कुत्तों और लोमाडियों के साथ-साथ अराजक हाथी,चीतों और बाघों का एकाधिकार हो गया जंगल के आम प्राणी वास्तविक रूप में बहुत ही अधिक त्रस्त थे लेकिन उन्हें डर था अगर शेरों की सरकार चली गई तो भेड़िए फिर से उन्हें नपुंसक बना देंगे इस खौफ से शेर को ही जंगल का राजा बनाए रखने में उनकी आपसी सहमति थी हालांकि शेर को सब पता था क्योंकि पीठ पीछे लोमड़ी कुत्ते और बंदर कौन सा गुल खिला रहे हैं उन्हें पता था कि वे पारिश्रमिक शेर से ले रहे हैं। लेकिन उससे कई गुनाह ज्यादा धन उन्हे अपद्त्तय भेड़ियों और अराजक जानवरों से प्राप्त हो रहा था शेर को मालूम था जंगल में फैली अराजकता के पीछे किन तत्वों का हाथ है लेकिन उसके पास ऐसा कोई तरीका न था जिससे वो बंदर कुत्ते और लोमड़ियां को ईमानदारी का पाठ सीखा पाता।और शिक्षा के अभाव में स्वंम को शक्तिहीन समझ बैठे शेरों और उनके समकक्ष जानवरों को नींद से जगा पाता।
विदेशी शिक्षा से शिक्षित सचिवों के घेरे में फसा शेर भला देसी फैसले कैसे लेता हाय बेचारा शेर।