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Editorial














                 

                                             
बेनाम राजनीति आज से 70 वर्ष पूर्व भारतवर्ष एक मांस के लोथड़े के रूप में इंग्लिश चील के पंजो में था।लेकिन अपने ठीक ऊपर भारतीय बाज को मंडराते देख चील को अपना भोजन लुटता दिखाई पड़ा चील थोड़ा नीचे गिरा तो उसने देखा की आठ-दस कौवे  उसके भोजन पर नजरें गड़ाए हुए आसपास मंडराते दिखाई दे रहे हैं। चील के मन में एक कुटिल विचार जन्मा उसने सोचा यदि बाज ने झपट्टा मारा तो भोजन तो जाएगा ही साथ में जान का जोखिम भी मुफ्त में मिलेगा क्यों ना इन कौवो को इस भोजन का लालच दिया जाए और इन कौवों की  सहायता से परम शत्रु बाज को भगाया जाए या उसका शिकार कर लिया जाए कौवों को यह बात पसंद आई उन्होंने चील के हाथों से भोजन स्वीकार किया और शर्त के अनुसार चील के साथ मिलकर उस बाज पर टूट पड़े वे बाज का शिकार तो नहीं कर सके लेकिन बाज को दूर तक खदेड़ने में समर्थ हो गए बाज के जाने के बाद चील भी कौवों से विदा लेकर किसी नए शिकार की तलाश में उड़ गई कौवो ने उस मांस के लोथड़े को 70 साल तक आपस में बैठकर खाया और मौज उड़ाई अब यही कौवे अपने उस भोजन को किसी को दिखाना नहीं चाहते क्योंकि इन्होंने 70 साल पहले एक हवा उड़ाई थी।जिसमें उन्होंने कहा था कि हम बाज के पंजों से इसे छीन कर लाए हैं। बाज हमारे भय से मृत्यु को प्राप्त हो गया है।सुनने में  तो ए एक पौराणिक कथा लगती है। परंतु कौवे के लिए यही सच है,जो उन्होंने अपने स्वदेशी कौवों को बताया उनके देश में आज भी यही प्रचलित है, वे कौवे साथी कौवों पर कुछ समय पहले तक जिस राजनीति से शासन कर रहे थे। उसका नामकरण करना बड़ा ही दुष्कर कार्य हो गया। बाज के बच्चों के खिलाफ कौवा सेना में कौरवों की भांति कुछ भी रख नहीं छोड़ा था।लेकिन बाज के कुछ बच्चे लड़ते रहे और एक दिन एक साहसी बाज के बच्चे ने राजगद्दी कौवे को भगाकर हथिया ली वो भी अपनी पूरी बाज सेना के साथ अब ना तो कौवे इस बात का जवाब दे पा रहे हैं। कि उन्होंने उनके पूर्वज बाज के साथ क्या किया लगातार इतने वर्षों से बाज जाति के लिए वह खाई क्यों खोजते रहे सारे खाद्य पदार्थों पर कौवों ने अपना एकाधिकार कैसे कर लिया अब कौवा इधर-उधर बगले झांकते हुए बस कांव कांव कांव कांव करते हुए पूरे जंगल में उड़ते हुए दिखाई और सुनाई दे रहे हैं, कौवों के द्वारा की गई इस राजनीति का क्या नाम रखा जाए मैं अभी तक इस निर्णय पर नहीं पहुंचा और ये लेख पढ़ने के बाद यदि कोई भी बाज या कौवा बेनामी राजनीति का नामकरण कर सके तो मुझे अत्यंत हर्ष का अनुभव होगा

चीफ एडीटर ;- सुशील निगम
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Shushil Nigam

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