Editorial.SocialTopUPकानपुर
{Editorial}
- शराब बनाम अपराध पिछले एक दशक से हमारा
- देश अनगिनत विषाक्त पदार्थों के प्रचलन से विशेष
- रूप से आहत हुआ है, कभी इन नशीली वस्तुओं
- का व्यापार और प्रयोग जैसे शराब, अफीम, गांजा, भांग इत्यादि इत्यादि को काफी खराब दृष्टि से देखा जाता था। हां यह बात और है, कि वह एक अलग दौर था।लेकिन आज हम बात करेंगे देश की वर्तमान स्थिति पर आज भिन्न-भिन्न तरह के जिनमें कई आवश्यक दवाइयां भी शामिल है,विषाक्त एवं नशीले पदार्थों का सेवन बढ़ रहा है। और आज का युवा चेतना के उस पायदान पर खड़ा है, जहां से दो रास्ते निकलते हैं। और वह यह तय नहीं कर पा रहा है, की हमें किस रास्ते का चयन करना चाहिए हालांकि यह बात और है। इसका उत्तरदायित्व कहीं ना कहीं हमारी कमजोर एवं अविकसित शिक्षा प्रणाली पर भी है। लेकिन यहां यह चर्चा का विषय नहीं है। हम इन विषाक्त पदार्थों के सेवन और उसके परिणाम पर फोकस करने वाले हैं। जो कि अपराधों के रूप में सामाजिक परिवेश के भीतर स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।इसे मैं एक उदाहरण के माध्यम से बताना चाहूंगा अभी हम सब ने देखा 22 मार्च से 3 मई तक पूरे 43 दिन किसी भी प्रकार का कोई नशीला पदार्थ समाज में नहीं पहुंच रहा था।जिसके परिणाम स्वरूप अपराध का ग्राफ बहुत ही ज्यादा कम हो गया लगभग ना के बराबर हां लेकिन आप कह सकते हैं। कि ये लाँक डाउन की अवधि रही है, दूसरा तथ्य भी मैं प्रस्तुत करूंगा अगर आपको याद हो उत्तर प्रदेश में योगी सरकार गठन के साथ ही शराबबंदी का एक दौर आया था।और तब
- भी समाज ने यह स्वीकार किया था उस समय भी अपराध बहुत अधिक कम हो गया था मतलब क्या अपराध का सम्बंध सीधे तौर पर इन विषाक्त और नशीले पदार्थों के साथ है।इसका अर्थ यह माना जाए कि इन विषाक्त और नशीले पदार्थों की वजह से ही मनुष्य की मानसिक चेतना पर कुठाराघात होता है,
- और परिणाम स्वरूप स्वस्थ मनुष्य मानसिक बीमार
- की तरह आचरण करने लगता है। और समाज एवं कानून उसे अपराध की संज्ञा दे देता है। यह एक निर्णायक सत्य के रूप में विचार मंथन के बाद प्रश्न
- के रूप में उभर कर आया है,कि देश की शांति व्यवस्था को अखण्ड बनाए रखने के लिए विषाक्त और नशीले पदार्थों का चलन रोकना होगा इन्हें व्यक्ति की मानसिक चेतना से भी बाहर भेजना होगा इसके लिए मुख्य रूप से हमें अपनी शिक्षा प्रणाली को वापस लाना होगा जिसका आधार हमारे अपने भारती नैतिक मूल्य है। सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों से विक्रय होने
- वाले खुले और चोरी छुपे विक्रय होने वाले तमाम प्रचलित नशीले पदार्थों से देश और देशवासियों को तौबा करनी होगी तब हम अखण्ड एवं शांत प्रिय भारतवर्ष की स्थापना कर सकेंगे।
- चीफ एडीटर ;- सुशील निगम