भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी कानपुर की सड़कें
15 नवंबर 2022 तक पूरे उत्तर प्रदेश शहर व ग्रामीण क्षेत्रों की सभी सड़को को गढ्ढा मुक्त करने का योगी जी का प्लान हुआ फ्लाप
सड़कों का तो अता पता नहीं गढ्ढे ही गढ्ढे दिखाई पड़ रहे है कानपुर की मेन सड़को पर
TIMES7NEWS – कानपुर : सरकार चाहे कितनी भी कोशिश कर ले अपने प्रदेश को स्वच्छ व साफ रखने और आने जाने वाले मार्गो को दुरुस्त रखने की लेकिन भ्रष्ट सरकारी तंत्र के चलते कुछ भी दुरुस्त नहीं रह सकता आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने पूरे प्रदेश को स्वच्छ साफ रखने और गांव से लेकर शहर तक सभी मार्गो के निर्माण के लिए कई योजनाएं बनाई और अच्छा खासा बजट देकर उन्हें चुस्त दुरुस्त रखने के लिए सख्त निर्देश भी जारी किए लेकिन सब ढाक के तीन पात ही निकले। खास तौर पर प्रदेश के सभी शहरों को हाईटेक बनाने के लिए बड़ी बड़ी योजनाएं लागू की लेकिन योजनाओं के लिए पास हुए बजट में बंदर बांट पहले हो जाता है, तो फिर व्यवस्थाएं दुरुस्त कैसे हो सकती है?
आइए अब हम आपको कानपुर साउथ की खस्ता हाल सड़के दिखाते हैं,जिन्हे उत्तर प्रदेश के मुखिया ने 2022 में 15 नवंबर तक गढ्ढा मुक्त करने का बीड़ा उठाते हुए आदेश जारी किया था और उनकी गुणवत्ता की जांच करने के लिए विभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए थे लेकिन उन भ्रष्ट अधिकारियों ने कौन सी गुणवत्ता की जांच की यह तो इन मेन मार्गो की हालत खुद बयां कर रही हैं । अभी बरसात के 20 दिन ही बीते है कि सड़कों का तो पता नहीं गढ्ढे ही गढ्ढे नजर आ रहे हैं कानपुर की मेन सड़को पर ए तो हम आपको केवल इण्डियन पेट्रोल पाईप लाईन किनारे बनी दांसू कुवां चौराहे से लेकर पतालेस्वर महादेव मंदिर तक लगभग ढाई किलो मीटर लम्बी सड़क है जिसकी हालत दिखा रहे है।जिसपर लगभग आठ माह पूर्व पैचिंग की गई थी और आज उसके हाल बद से बद्तर नजर आ रहे हैं।
अब सवाल ये उठता है कि सड़क को बनाने वाले ठेकेदार ने कौन सा पैचवर्क किया था, किस तरह के मैटेरियल का इस्तेमाल किया था। इस कार्य की देख रेख करने वाले क्षेत्रीय पार्षदों ने कौन सा दायित्व निभाया और कैसे इन ठेकेदारों को पार्षदों ने एनओसी दी ?
जिन विभागीय जिम्मेदारों को इन कार्यों की गुणवत्ता की जांच करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थीं उन्होंने कौन सी जांच की जो लगभग आठ माह में सड़के गढ्ढों में तब्दील हो गई ?
लगता है कि आम जनता की गाढ़ी कमाई जो सरकार द्वारा जनता की समस्याओं को दूर करने के लिए बजट के रूप में इन विकास कार्यों के लिए दी जाती है उसका आधा भी विकास कार्यों में खर्च नही किया जाता हैं , बस कुर्सियों में बैठे सरकारी मुलाजिम कागजों में खानापूर्ति कर सब मिलकर बंदरबांट कर डकार जाते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि चाहे नाली हो या नाला निर्माण ,चाहे इंटरलॉकिंग हो या मार्गों का निर्माण, मिट्टी की खुदाई हुई नाली नाला बनना शुरू भी नहीं हुआ ठेकेदार, क्षेत्रीय पार्षद, और विभागीय कर्मचारी सब मिल ट्रैक्टर ट्राली लगा मिट्टी बेच डालते हैं और फिर खानापूर्ति कर निर्माण कर पन्ना भर डाला, अब चाहे सड़क धसें, चाहे इंटरलॉकिंग और चाहे नली – नाला टूटे उनका तो काम पूरा हुआ।
भांड में जाए जनता , अपना काम बनता