30 दिन पहले डीसीपी रवीना त्यागी ने मांगा था 3 दिन का समय वह भी तीन उंगलियां दिखाकर
तब से लेकर आज तक डीसीपी के पीआरओ चला रहे फरियादी की फरियाद पर चमचे
डीसीपी के पीआरओ खुद बन जाते हैं डीसीपी आनन-फानन में 1-2 फोन कर फरियादी को बेवकूफ बनाकर वापस भेज देते
कानपुर :थाना जुही आजकल कानपुर पुलिस के खेल निराले चल रहे हैं,आप कहीं भी चले जाइए अर्थात चौकी से लेकर कमिश्नर ऑफिस तक एक ही स्वर आपको सुनाई देगा, दिखाई भी देगा, समझ में भी आएगा 5 महीने से डीसीपी के ऑफिस के टेबल पर एक ऐसी जांच मुकम्मल नहीं हो पा रही है,जिसका सच पूरी तरह से ओपन है, यानी खुला है, साफ तौर पर दिखाई दे रहा है, की Times7news के एडिटर डॉ. आर्यप्रकाश मिश्रा के साथ मैग्मा फिनकॉर्प प्राइवेट लि.और उसकी एसोसिएट एमएसडी ने मिलकर फ्रॉड किया। लेकिन विवेचक से लेकर एसीपी से होकर डीसीपी की टेबल तक 5 महीने में एक छोटी सी जांच नहीं पहुंच पा रही है,और ना ही पुलिस ऑफिसर कुछ खुलकर बता रहे मतलब—— लगभग 30 दिन पहले डीसीपी रवीना त्यागी ने बड़े ही सहानुभूति अंदाज में 3 दिन का वक्त आर्यप्रकाश मिश्रा जी से मांगा 30 दिन हो गए इस दुर्घटना को लेकिन अभी तक डीसीपी के वह 3 दिन यानी 72 घंटे अभी पूरे नहीं हुए हैं।
या तो डीसीपी के आदेश में वो दम नहीं की उनके नीचे के पुलिसिया कर्मचारी उनके आदेश का अनुपालन कर सकें या फिर डीसीपी खुद (सकारण) नही चाहती, कि पीड़ित को न्याय मिल सके गजब की बात तो तब हुई जब फरियादी के पास विवेचन का फोन आया की डीएसपी आलोक सिंह को प्रकरण समझ में नहीं आ रहा है,अब इनको प्रकरण समझ में कैसे आएगा वह कौन सी समझ है, भगवान जाने पुलिस विभाग ने तो डीएसपी बना ही दिया है,और साहब तो साहब है ही, खैर इस तरह से पुलिस के काम करने का तरीका वाकई हतप्रभ करता है।
आईजीआरएस पर भी की गई कंप्लेन हुई फ्लॉप, डीसीपी के टेबल पर दी गई कंप्लेन भी फ्लॉप, अब योगी जी बताइए अगला रास्ता क्या है।और इस तरह के दोषी अफसरों के साथ क्या होना चाहिए कृपया माननीय योगी जी इस खबर का संज्ञान ले फरियादी एक पत्रकार है ,उसके साथ पुलिस द्वारा किया जा रहा ऐसा व्यवहार भविष्य के समाज की स्पष्ट छवि निर्दिष्ट करता है।
जनता को सरकार की ओर से मिलने वाली कानूनी सहायता और न्याय की प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह जीवन्त करता है।
(एडीटर इन चीफ : सुशील निगम)