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संपादक की कलम से-धरती का काल बनता मानसिक प्रदूषण

धरती का काल बनता मानसिक प्रदूषण

प्रिय पाठकों आपने कई तरह के प्रदूषण सुने होंगे धरती को काल के गाल में ले जाने के लिए ध्वनि प्रदूषण वायु प्रदूषण जल प्रदूषण मृदा अपरदन वगैरा-वगैरा लेकिन मानवता को काल के गाल में ले जाने वाला एक और प्रदूषण समय के साथ साथ क्षत्रिय होता चला जा रहा है, जो सिर्फ मानवता ही नहीं मनुष्य को भी खा सकता है, जिसे हम मानसिक प्रदूषण कह सकते हैं, जाहिर है, कि मन में उठने वाले  विचारों का दूषित हो जाना ही मानसिक प्रदूषण है, इसके कारण इसके प्रभाव और उनका परिणाम हम तीनों पर चर्चा करेंगे आपने अपने घर में अपने आस-पास अक्सर आपने देखा होगा की लोग कुछ ऐसी बातें कहते या करते हैं, जो अनुचित ही नहीं सर्वथा तर्कसंगत भी होती है, जैसे बातचीत करने के दौरान आपस में ही गालियों का आदान-प्रदान होता रहता है, जैसे खाली रोड पर भी कोई व्यक्ति वाहन का हारन बजाते हुए ही चला जाता है, इस तरह की छोटी छोटी बातें मानसिक प्रदूषण का प्रतिनिधित्व करती है, इसमें बहुत बड़ी  बातों का भी शुमार होता है, जैसे बाजारों में फैली इसकी में जो ग्राहकों को लुभाने का काम करती है, वह भी एक तरह का मानसिक प्रदूषण ही है, जो फैलाया जा रहा है, मान लीजिए दो रुपए की कोई चीज पर 20 पैसे की कोई वस्तु स्कीम के तहत रखी गई 20 पैसे की गुणवत्ता उत्पाद की कम कर दी गई अन्यथा नुकसान कोई व्यापारी कदापि नहीं चाहेगा लोगों के साथ अन्याय हो जाता है, और लोग समझ भी नहीं पाते तीसरा एक मुख्य कारण मोबाइल पर सप्लाई होने वाले अनैतिक विज्ञापन समाज में मानते प्रदूषण फैलाने के लिए एक हद तक जिम्मेदार है,आज के दौर में 12 वर्ष की आयु से लेकर 70 वर्ष की आयु वर्ग वाले लोगों के हाथ में स्मार्टफोन रहता है, लगभग 72% जनता चाहे अनचाहे इस तरह के प्रदूषण से प्रदूषित होती है, जिसका परिणाम अपराध के रूप में सामने आ जाता है, यह बात कोई छिपी नहीं है, हम यहां आंकड़े प्रेषित नहीं करना चाहते सिर्फ मानसिक प्रदूषण के कारण प्रभाव एवं परिणाम पर ही सोचना चाहते है, मानसिक प्रदूषण का एक और प्रमुख कारण पाठ्यक्रमों से संस्कृति भाषा का हट जाना भी है, क्योंकि सारी नैतिक शिक्षा तो संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध है, हिंदी भाषा में भी इंग्लिश मीडियम शिक्षा प्रणाली ने सेंध मार ली मतलब रहा बचा जो कुछ था भी उसे भी ले जाना जब नैतिक पाठ हम बच्चों को पढ़ाएंगे ही नहीं तो उनके द्वारा समाज में प्रेषित अनैतिकता पर प्रश्न चिन्ह उठाने का हक भी हमें नहीं होता यह भी एक तरह का मानसिक प्रदूषण है, जिसका परिणाम सड़कों पर भीख मांगते वृद्ध वृद्धा आश्रम में जीवन काटते वृद्ध के रूप में देखा जा सकता है।

(एडीटर : डॉ0 आर्यप्रकाश मिश्र)

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Shushil Nigam

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