कानपुर विकास प्राधिकरण के अधिकारियों के द्वारा भू माफियाओं के कब्जे से अपनी जमीन छुड़ाने की हर कोशिश नाकाम
मंडलायुक्त कानपुर प्रशासनिक और जॉइंट मजिस्ट्रेट सदर तहसील के आदेशों की शासन और प्रशासन द्वारा अवहेलना
कैबिनेट मंत्री सतीश महाना बीजेपी विधायक अभिजीत सिंह सांगा और करणी सेना के प्रांत अध्यक्ष कुंo ब्रजराज सिंह रजावत के अथक प्रयासों पर पड़े ओले
उत्तर प्रदेश :कानपुर नगर बूढ़पुर मछरिया के अंतर्गत आने वाली चराई, चारागाह, सीलिंग, बंजर,ऊसर, नवीन, परती, और तालाब यहाँ तक की झील भी वर्षों से लगातार भू माफियाओं द्वारा कब्जा कर बेची जा रही है और वर्षों से ही शासन, प्रशासन केडीए और तहसील सबको अच्छी तरह से पता भी होगा लेकिन अभी तक ऐसी कोई कार्यवाही नहीं हुई जो निर्णायक साबित हो पाती लेकिन पिछले 2 सालों से कुछ समाजसेवी इन जमीनों के बचाव हेतु मैदान में उतरे क्योंकि झीलें,तालाब , चराई,चारागाह,ऊसर, बंजर,परती जमीनें मानवी जीवन के लिए महत्वपूर्ण होती हैं साथ ही साथ पशुओं के लिए भी उतनी ही महत्ता रखती हैं उससे भी बड़ी बात यदि इन जमीनों का सरकार द्वारा अधिग्रहण किया जाता है तो इन जमीनों से प्राप्त होने वाली राजस्व सरकार की अपनी राजस्व होती हैं यदि सीलिंग की जमीन हुई तो सरकार द्वारा भूस्वामी को मुआवजा दिया जाता है लेकिन बूढ़पुर मछरिया इलाके में भू माफियाओं द्वारा सारी जमीन जिन पर उन्होंने कब्जा किया समाज के लोगों को विक्रय किया और पैसा डकार गए वह भी अपनी आराजी का उल्लेख करते हुए पूर्णतया अवैध तरीके से।
इस संबंध में पिछले 2 वर्षों से करणी सेना के कुं. बृजराज सिंह ने यह मामला शहर के उच्च अधिकारियों के संज्ञान में डाला मतलब एक पहल की इसके साथ ही अधिकारियों द्वारा जांच में भी तथ्य सही पाए गए कुछ आदेश भी हुए छोटी मोटी 1-2 कार्यवाही भी हुई लेकिन आराजी संख्या 900, 881, 1115 जो सीलिंग की जमीनें हैं इन्हें भू माफियाओं द्वारा अपनी आराजी संख्या डालकर अवैध रूप से बेच दी गई है जिसमें एक आराजी संख्या में लगभग 3:50 और 1115 में लगभग 150 घर एक संप्रदाय विशेष को विक्रय किए गए लेकिन प्रशासन को खबर नहीं लगी हालांकि ऐसा संभव नहीं है राजस्व अधिकारी जो इसी कार्य हेतु क्षेत्राविशेष में नियुक्त किया जाता है कई वर्षों से कई राजस्व अधिकारी नियुक्त किए गए होंगे उनकी राज्य एवं राष्ट्र के प्रति जो निष्ठा रही होगी सस्ते या महंगे जरूर विकी होगी अन्यथा इतना बड़ा गोलमाल संभव नहीं हो सकता एक छोटा सा मकान बनाते समय भूस्वामी के पास केडीए का परिवर्तन दस्ता नक्से की डिमांड लेकर खड़ा हो जाता है और नक्शा ना मिलने पर भी संतुष्ट होकर कैसे चला आता है बड़ी सीधी और सरल बात है लेकिन विषय बड़ा सोचनी है बड़े बड़े अधिकारियों की कलमों के द्वारा उल्लेखित आदेश आखिर कहां गायब हो जाते हैं उनका अनुपालन क्यों नहीं होता और शीर्ष नेतृत्व तक यह मत ले क्यों नहीं पहुंचते और पहुंचते भी हैं तो उन पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं होती इसकी जवाबदेही किसकी है ऐसी समस्याएं राष्ट्र या राज्य की साशकीय एवं प्रशासकीय व्यवस्था पर एक बहुत बड़ा काला प्रश्नचिन्ह अंकित करती है इसका जवाब देश को व राज्य को व आम जनता को कौन देगा।
(एडीटर इन चीफ : सुशील निगम)