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✒✒ *गुरू पूर्णिमा के पावन अवसर पर गुरु महिमा पर विशेष-सम्पादकीय*

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*साथियों,*कल गुरु पूर्णिमा थी और इस पावन अवसर पर दुनिया भर में गुरु की पूजा अर्चना वंदना अभिनन्दन नमन करके उनकी महिमा का बखान किया गया।गुरु की महिमा का गुणगान करना संभव नहीं है क्योंकि गुरु को माता पिता ही नहीं ईश्वर से बड़ा स्थान दिया गया है।कहा भी गया है कि-” गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागौ पांय बलिहारी गुरु अपने गोविन्द दियौ बताय”।गुरु शिष्य परम्परा हमारी नयी नहीं है बल्कि यह आदिकाल से चली आ रही है और भगवान राम ने भी इस परम्परा का निर्वहन किया।गुरु शिष्य परम्परा आज भी विद्यमान है तथा लोग अपना सर्वस्य गुरु के चरणों में न्यौछावर कर उसकी शरणागत हो रहे हैं। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर सबसे बड़ा आयोजन गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ पर किया गया और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी ने इस परम्परा का अनुसरण किया।इसी तरह काशी मथुरा वृंदावन अयोध्या चित्रकूट नैमिष कोटवाधाम आदि धार्मिक स्थलों पर भी गुरु पूर्णिमा पूरी श्रद्धा भक्ति के साथ धूमधाम से मनाई गयी तथा गुरु को उपहार देकर सम्मानित किया गया। गुरु के बारे में हमारी मान्यता है कि-” गुरू ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरूरेव महेश्वरः गुरु साक्षात परमेश्वर तस्मै श्री गुरूवै नमः”।गुरु एक साधारण मनुष्य को भी ईश्वर से साक्षात्कार करवा सकता है जो कार्य कई जन्मों में  पूरा नहीं हो सकता है उसे गुरु इसी एक ही जन्म में  पूरा कर देता है।गुरु जब सुजान मिल जाता है तो मनुष्य जीवन धन्य हो जाता है और जीव को आवागमन से फुरसत मिल जाती है।गुरु जाति धर्म  सम्प्रदाय देश दुनिया से ऊपर होता है और उसकी शरण में पहुँचने वाला सिर्फ उसका शिष्य होता है।गुरु न हिन्दू होता है और न मुसलमान सिख ईसाई होता है बल्कि गुरु साक्षात परमपिता परमेश्वर होता है।गुरु वशिष्ठ जैसा मिल जाता है तो शिष्य को मर्यादा पुरूषोत्तम बना देता है।गुरु ही एक ऐसा है जो मनुष्य को सीधे ईश्वर से लिंकप करवा देता है।गुरु ही ईश्वर है और गुरू ही इस संसार का सार है तथा बिना गुरु के यह मानव जीवन बेकार है।कहते बिना गुरूमुख मनुष्य का मुँह देखने तक से पाप लगता है और जहाँ पर चला जाता है वहओ भूमि अपवित्र हो जाती है।गुरु द्वारा दिया गया नामदान शिष्य को मोक्ष प्रदान करने वाला होता है।गुरु भी दो तरह के होते हैं जिस तरह देवताओं व राक्षसों के बृहस्पति व शुक्राचार्य थे।शुक्राचार्य जैसा गुरु मिल जाता है तो वह शिष्य को रावण सरीखा बना देता है और अगर बृहस्पति जैसा मिल जाता है वह शिष्य को रामतुल्य बना देता है।आधुनिक युग का गुरु एक साधारण परिवार के साधारण व्यक्ति को मिसाइल मैन राष्ट्रपति कलाम बना सकता है तो अफजल जैसा गुरू आतंकी बना सकता है।इस समय भी दोनों गुरूओं की गुरु शिष्य परम्परा चल रही है और दोनों के शिष्य अपने अपने क्षेत्र में अपना अपना कार्य कर रहे हैं।हम गुरु पूर्णिमा की समापन वेला पर हम अपने अपने गुरू का पुनः चरणवंदन अभिनन्दन कर उन्हें शत शत नमन कर रहे हैं।
*धन्यवाद।। भूलचूक गलती माफ।*
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Shushil Nigam

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