सूबे की अनियंत्रित पुलिस के कारनामे जारी
कानपुर में जबरन पत्रकार को गाड़ी में घसीट कर बैठाया
मारपीट की घटना को कैमरे में कैद करने का अपराधी बना पत्रकार
कानपुर थाना किदवई नगर बीती 1 नवंबर की शाम गौशाला चौराहे पर मारपीट की घटना को कवर करना पत्रकार को भारी पड़ा दरअसल मामूली से एक्सीडेंट की बात को लेकर सफारी में जा रहे एसटीएफ के अधिकारी और उनकी टीम ने दो युवकों को बुरी तरह पीटा दरअसल बाइक से सफारी को टक्कर लग गई थी पुलिसिया गुंडे उन युवकों को पीटते हुए गाड़ी में घसीट कर डाल रहे थे इसी बीच आशीष अवस्थी का उधर से निकलना हुआ घटना को कवर करते हुए पत्रकार को एसटीएफ की टीम ने जबरन गाड़ी में बैठा लिया जिन्हें साथी पत्रकारों के जबरदस्त गर्मा गर्मी और बहस के दबाव के चलते रास्ते में छोड़ तो दिया लेकिन पुलिस की ये गुंडागर्दी कुछ समझ में नहीं आई एसटीएफ हो या मिलिट्री पत्रकार को अपना काम करने से नहीं रोक सकती यदि पत्रकार के काम करने के बीच में बाधा उत्पन्न की गई है, तो यह एक अपराध है, और जबरन गाड़ी में बैठा लेना तो संगीन अपराध है रात 1 बजे तक संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ एफ आई आर कराने को पुरजोर कोशिश करते रहे पत्रकार लेकिन किदवई नगर थाने में उनकी एक न सुनी गई आखिरकार ऐसा कब तक चलेगा जब पत्रकारों का यह हाल है, तो आम जनता के साथ पुलिस क्या कर रही होगी यह सोचने की बात है, ऐसे रामराज्य से अच्छा तो अंग्रेजों का ही शासन था।कम से कम वह गैर थे अब एक पत्रकार को न्याय दिलाने के लिए कितनी भीड़ की जरूरत पड़ेगी यह कौन बताएगा या पूरा शहर सारी व्यवस्था को को रोक दे सारा काम धाम ठप करके इस बात के पीछे लग जाए कि दोषियों को उचित सजा दी जाए तो कानून व्यवस्था है कहां अगर जनता को लड़कर ही न्याय लेना है, तो जनता के हाथ में फैसला छोड़ दिया जाए कुछ ना कुछ कर लेगी फैसला
अंधे पीसे कुत्ते खाए ऐसा तो उत्तर प्रदेश पहले कभी ना था जाने क्या सुधारा जा रहा जो सब गड़बड़ होता जा रहा किसको दोष दें किसके सिर पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़े कुछ समझ में नहीं आ रहा।
एडीटर इन चीफ ; सुशील निगम