सीमा रेप एंड सुसाइड केस में हलचलें तो बहुत हुई लेकिन न्याय के नाम पर ठेंगा।
मानवाधिकार आयोग हरियाणा नें मामले को संज्ञान में लेकर शुरू की कार्यवाही।
उधर उप पुलिस अधीक्षक गुरुग्राम और पुलिस अधीक्षक फरीदाबाद ने दोबारा जांच करने की नौटंकी शुरू की।
हरियाणा : पलवल बहुचर्चित सीमा चौहान रेप एंड सुसाइड मामला, जिसमें रेप के बाद सामाजिक न्याय और अनुशासन के ठेकेदारों के द्वारा उसकी बात ना सुने जाने से दुखी होकर उसने आत्महत्या कर ली ।और एक ऐसे समाज को अलविदा कह दिया जिसमें मनुष्य के सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की कोई कीमत नहीं है। क्योंकि लगभग 6 साल पुराना यह मामला है और अभी तक इस कांड में एक भी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है बल्कि यूं कहें की गिरफ्तारी नहीं की गई है। मतलब सारा का सारा सिस्टम ही खराब है यानी कि एक आरोपी अगर फंसता है तो वह अपने अपराध जाल में बहुत ही छोटी बड़ी अपराधिक हस्तियों को घसीटने की कुब्बत रखता है। इसलिए आरोपी खुले मैदान में किसी दूसरी घटना को अंजाम देने के लिए बाकायदा छोड़कर रखे गए हैं। ऐसा प्रतीत होता है मानो भारतवर्ष में सिर्फ एक लड़की के साथ बलात्कार हुआ जिसके सभी आरोपियों को फांसी दी गई बाकी का क्या——-
या निर्भया नाम की उस लड़की के साथ भी बलात्कार नहीं हुआ। वह चारों लड़के किसी बड़ी हस्ती की साजिश का शिकार होकर अपनी जान गवा बैठे या यूं कहें कि उनकी हत्या कर दी गई ।अब न्याय व्यवस्था, कानून व्यवस्था, प्रबंध व्यवस्था जहां पर उच्च स्तरीय शिक्षा विद पुरुष आसनासिन होते हैं जिनके अहंकार का कोई ओर छोर ही नहीं होता।
वास्तविकता तो यह है इस खबर को लिखते समय वह शब्द नहीं मिल रहे हैं जिनसे भारतीय व्यवस्थाओं की उचित व्याख्या की जा सकती हो। आखिरकार भारतीय आम जनमानस जो वोट देकर सरकारें चुनती हैं और उन पर अपनी वह अपने जान माल की सुरक्षा को लेकर भरोसा करती हैं ।ऐसे में पुलिस कस्टडी में हुई मौतें,पुलिस द्वारा की गई लूटे, एवं भ्रष्टाचार के तहत वसूली वगैरह को देखते हुए तो पहले दो बार लिखी जा चुकी पुस्तक “भारत दुर्दशा” शायद अब तीसरी बार लिखी जानी चाहिए।
ऐसी घटनाएं समाज में एक बहुत बड़ा सवाल छोड़ देती हैं।लेकिन इसका उत्तर शायद किसी के पास नहीं होता,क्योंकि सबसे बड़ी बात यह है कि सीमा चौहान जैसी महिला का पति लड़ तो रहा है लेकिन किसके लिए? जिसे न्याय चाहिए था उसने तो स्वयं को न्याय दे ही दिया ।अब उसे न्याय कौन दे सकता है? और जो दे सकता है वह तो देगा ही आने वाला वक्त इसका गवाह भी होगा। लेकिन वास्तविक न्याय तो तब होता जब सीमा चौहान की आंखों के सामने ही उसकी मर्यादा के अपराधी सलाखों के पीछे होते।
( एडीटर इन चीफ : सुशील निगम)