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सरकारी कुठाराघात

 सरकारी कुठाराघात










एडीटर इन चीफ : सुशील कुमार निगम

छै महीने चले लॉक डाउन ने गरीब जनता को कभी कर्ज की किस्त के हथौड़े से मारा कभी बिजली से बिजली गिरा के मारा ये सरकारी दावे जितने भी किए गए वह सब फुसफुसे पटाखे साबित हुए।हां यह अलग बात है, कुछ लोगों को सरकार ने हजार या पाँच सौ रुपए के रूप में दिए होंगे लेकिन उन्हीं लोगों से बिजली की कीमतों में 12.5% की बढ़ोतरी करके ब्याज समेत तुरंत वसूल लिया वाह री सरकार वाह रे व्यवस्था आहह— क्या प्रबंध है,बीजेपी भाजपा की सरकार को लाते वक्त गरीब जनता ने यह सोचा भी नहीं होगा देश में आपात की स्थिति में सरकार में बैठे चंद लोग जो उन्हीं के रहमों करम से माई बाप बन कर बैठ गए हैं,रावण जैसे कर्म करने लगेंगे ये सरकारी अमले की सवेदन शून्यता है, कि लाँक डाउन में डंडे मार मार के गरीब जनता को घर के अंदर किया पैसे भी कमाने नहीं दिए।और बिजली के बिल के नाम पर सारे केस्को के नियम ठोक दिए ऊपर से कीमतों में बढ़ोतरी की सरकार बताएं स्पष्टीकरण दे इस बात का आखिरकार कैसे उसने बिजली की कीमतों में वृद्धि करके लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया लोग तो पहले से ही परेशान थे जिस बिजली के मीटर लगवाने से पहले केविल  की कीमत मीटर की कीमत NSC की कीमत जमा करवा ली जाती है, उस मीटर का किराया सरकार किस हैसियत से लेती है, क्या यह उचित है, तो ऐसे अनुचित कार्यों के बाद भी सरकार बिजली की कीमतों में वृद्धि करके गरीब जनता के ऊपर कुठाराघात कैसे कर सकती है,आखिर इंसानियत नाम की भी कोई चीज दुनिया में होती है,क्या उच्च पदों पर बैठे ये लोग उस जनता के रहमों करम को भूल जाते हैं, जिसकी बदौलत आज वो बड़ी-बड़ी गाड़ियों में चल रहे हैं, सरकारी खर्चे पर पल रहे हैं, और माइक्रोफोन पर खड़े होकर बड़े बड़े वादे कर रहे हैं, क्या यह भूल जाते हैं,कि इन्हें गरीब जनता ने जो अपनी मेहनत के पैसे से इन्हें पालती है, क्यों यहां पहुंचाया वो कौन से वादे थे जो इन्होंने किए और जनता ने इन्हें सिर पर बैठा लिया ये कैसे यह भूल गए की जनता ने अपनी किस इच्छा या जरूरत के चलते इन्हें अपना माई बाप बनाया आखिर इन्हें कुठाराघात करने का साहस कहां से आ जाता है, पिछले सत्तर सालों में अरे अरे रुकिए पिछले सात सौ सालों में भारत की गरीब जनता को डंडे मार मार कर उस खामोशी की निद्रा में सुलाया गया जहां वो वोट तो कर सकते हैं, लेकिन अपने वोट की कीमत नहीं मांग सकते हैं, यदि कोई मांगने का साहस करता भी है, तो भारतीय संविधान में भारतीय दंड संहिता में इतनी धाराओं का प्रावधान है, कि दूध से धुला भी आप कोई व्यक्ति ले आइए उस पर भी 10 12 मुकदमे लादे जा सकते हैं, यह कोई बड़ी बात नहीं है,आए दिन आप सुनते होंगे पुलिस वालों की झूठे मुकदमे में फंसाने की धमकी से डरे सहमे लोग अपने हक का भी त्याग कर देते हैं,इतना ही नहीं इनमें से बहुत से लोग आत्महत्या भी कर लेते हैं,यह कुठाराघात क्या सरकारों को शोभा देता है,उत्तर प्रदेश की जनता उत्तर प्रदेश की सरकार से यह पूछती है, क्या वास्तविकता में बिजली की कीमतों में वृद्धि करने का यह उचित अवसर था यदि नहीं तो ऐसा क्यों किया गया जबकि मंदिर स्कूल बंद करके मधुशाला ही खोली गई सरकारी बजट में आनन-फानन में गजब का इजाफा भी हो गया फिर गरीब लोगों की जेब से बिजली के नाम पर पैसा वसूलने का मतलब क्या रहा या भीख में हजार हजार रुपए बांटने का मतलब क्या रहा उत्तर प्रदेश की जनता भीख नहीं लेना चाहती उसे उसके अधिकार चाहिए आपातकाल की स्थिति में उसे सरकार का सहयोग चाहिए लेकिन सरकार ने जो किया वह कुठाराघात है, वह भी उस गरीब जनता के साथ जिसने अपने एक-एक वोट को इकट्ठा करके पूरे सरकारी तंत्र को अपना रहनुमा बनाया।

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Shushil Nigam

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