Editorial.SocialTopराष्ट्रीय

सम्पादक की कलम से – लॉकडाउन और लॉक डाउन का औचित्य

एडीटर – डॉ0 आर्यप्रकाश मििश्र


लॉकडाउन और लॉक डाउन का औचित्य

हमारा भारत देश इस समय जिस कोरोना महामारी से जूझ रहा है, उस महामारी का ईश्वर जाने क्या निदान है और क्या कारण है।पहले भी जब प्लेग नामक महामारी से हमारा देश रूबरू हुआ था तब की परिस्थितियां बिल्कुल ऐसी ही थी,जैसे कि आज उस समय भी लोग बीमारी के भय से अपने स्वजनों के मृत शरीर को छोड़ कर भाग रहे थे। लगभग आज की परिस्थिति भी वैसी ही हो गई है।बीमारी का भय तो है ही साथ में अवसर परस्त लोगों की अवसरपरस्ती नें भी लोगों को बहुत मजबूर कर दिया है।इसे हम कुछ बिंदुओं की सहायता से अच्छी तरह समझ सकेंगे-

1= महामारी के समय प्रत्येक व्यक्ति को निजी स्वार्थ छोड़कर कंधे से कंधा मिलाकर राष्ट्र एवं राष्ट्रवासियों के हित में काम करना चाहिए, जिसकी बहुत बड़ी कमी दिख रही हैं, जबकि आज का परिदृश्य बिल्कुल उल्टा दिखाई दे रहा है, लोगों में आपसी सदभाव की बहुत बड़ी कमी नजर आ रही हैं।

2= आवश्यक वस्तुओं की कालाबाजारी एवं भंडारण आवश्यक उपकरण एवं आवश्यक दवाइयां जो कि जीवन रक्षक होती हैं, जिनका भण्डारण हुआ कालाबाजारी केवल अपराध ही नहीं नैतिकता के हनन की पराकाष्ठा भी है, सरकारी अमला खबर मिलने पर इनके विरुद्ध कार्यवाही कर तो सकता है लेकिन जरा सोचिए लगभग  एक सौ चालीस करोड़ लोगों के देश में किस किस पर कार्यवाही की जाएगी, मतलब ये संभव नहीं है।

3= महामारी और उससे जुड़े प्रत्येक पहलू पर नजर डाले तो महामारी में कितना नुकसान होगा,इसका अंदाजा पहले से नही लगाया जा सकता मतलब कितने शवों का दाह संस्कार करना पड़ेगा एवं दाह संस्कार में प्रयोग होने वाली सामग्री की प्रचुरता कितनी होगी उसमे प्रयोग होने वाली मैंन पावर कितनी होनी चाहिए कौन बता सकता हैं, इतना ही नहीं मरीजों की संख्या के हिसाब से चिकित्सीय स्टाफ दवाइयों की उपलब्धता, जीवन रक्षक उपकरणों का प्रबन्धन कितना होना चाहिये क्या इसका अंदाजा लगाया जा सकता है, ऐसे में साधन उपलब्ध व्यक्तियो द्वारा पीड़ित जनता के साथ क्या व्यवहार किया जाता हैं, जैसे शवों और बीमारों को लाने और ले जाने वाले एम्बुलेंस कर्मी कितना पैसा वसूल रहे हैं इसपे नजर कैसे रखी जा सकती हैं,क्या कोई तरीका है,उत्तर जिसके पास हो दे सकता हैं।

4= जिस देश के सारे हॉस्पिटल मरीजों से खचाखच भरे हो और तीमारदार घर से हॉस्पिटल, हॉस्पिटल से ऑक्सीजन की दुकान पर कुछ खाली सिलेंडर रिफिलिंग के लिए दौड़ रहे हो,कुछ फलों के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं, कुछ खाने का सामान इकट्ठा कर रहे हो यदि ऐसे व्यक्तियों को सड़क पर साधन नहीं प्राप्त होगा तो सिर्फ सोच कर देखिए क्या होगा सभी बुद्धिजीवी वर्ग देश की स्थिति और परिस्थिति पर विचार करें, गौर करें और इस परिस्थिति से बचने के साधन स्वयं तलाशे। यदि बलपूर्वक लॉकडाउन लगाया भी जाए तो दिल्ली उसका स्पष्ट उदाहरण होगी 2 हफ्ते के लॉक डाउन के बाद भी स्थिति वही की वही यह कोई युद्ध नहीं है,यह एक महामारी है इसका कोई निश्चित दृष्टिकोण नहीं होता, किसी को मालूम नहीं होता कि वह कब, कहां और कैसे इसकी चपेट में आ जाए।

यदि लिखा जाए तो सारी रात कम पड़ जाएगी शब्द खत्म नहीं होंगे और व्यथा भी खत्म नहीं होगी। कुछ उदाहरणों के माध्यम से यह स्पष्ट करने की कोशिश मैंने की है कि वास्तविक परिस्थिति कंधे से कंधा  मिलाने की है।जो कहीं भी किसी भी सूरत में दिखाई नहीं दे रही है, जिसका परिणाम सबके सामने है। आज वह परिस्थिति हो गई है। कि लोग अपने अपनों के शवों को छोड़कर भाग रहे हैं।अब जबकि चिकित्सा विज्ञान नें भी अपने हाथ खड़े कर दिये हैं चिकित्सकों की आखों में भी आंशू दिखाई देने लगे हैं, और जनसंख्या के दृष्टिकोण से साधन और संसाधन सीमित है ऐसी परिस्थिति में

ईश्वर हम सबकी रक्षा करें हम सबको सद्बुद्धि दे और इस लड़ाई में हमारी मदद करें।

(एडीटर : डॉ0 आर्यप्रकाश मिश्र)

50% LikesVS
50% Dislikes

Shushil Nigam

Times 7 News is the emerging news channel of Uttar Pradesh, which is providing continuous service from last 7 years. UP's fast Growing Online Web News Portal. Available on YouTube & Facebook.

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button