(सम्पादक की कलम से) प्रकृति समाज अपराध और व्यवस्था
(सम्पादक की कलम से)
प्रकृति समाज अपराध और व्यवस्था
सामाजिक व्यवस्था में आपराधिक निरंतरता सदैव रही है और रहेगी। क्योंकि समाज में दो ही प्रवृत्ति के लोग होते हैं,एक जो सीधी चाल चलते हैं दूसरे वो जो दूसरे के पैरों में टंगड़ी मारते हुए चलते हैं यह दूसरी प्रवत्ति वाले ही अपराधियों की श्रेणी में गिने जाते हैं। अव्वल तो सरकारों द्वारा ऐसे कानून नहीं लाए जाते कि अपराधों के नए पैटर्न पर ऐसी रोक लग सके की वहीं से उस पैटर्न का समूल उन्मूलन हो सके, दूसरी बात यदि कानून बनता भी है तो भ्रष्टाचार का राक्षस उसी कानून के जरिए निर्दोषों को जिंदा निगलने लग जाता है। तीसरी बात उच्च पदों पर आसीन शक्तिशाली बाहुबली लोगों की संतति नैतिकता के अभाव में अधिकांशतः स्वयं को प्रभावशाली मानते हुए अपराध के दलदल में प्रविष्ट हो जाती है जिसे बचाने के लिए कानून बनाने वालों के द्वारा ही कानून की ऐसी तैसी की जाती है ।और आम जनमानस सब कुछ जानते हुए भी कुछ बोल नहीं पाता, कुछ कर नहीं पाता। यहां पर यह बताना अत्यंत प्रसंग संगत होगा की इन प्रभुता धारियों की प्रभुता के कारक यह आम जनमानस ही है,जिसके हाथों वोट पाकर प्रभुत्व स्थापित हो जाता है। जिसके चलते घटनाओं का आविर्भाव होता है ।किसी भी देश के लिए ऐसी घटनाएं देश के माथे पर कलंक होती हैं।राजनीतिक धरातल पर सामाजिक धरातल जैसी संरचनाएं दिखाई तो देती हैं मगर होती नहीं। ऐसे में देश विरोधी ताकतें ऐसी परिस्थितियों का अपने फायदे के लिए जमकर प्रयोग करती हैं। इसका सबसे पुष्ट और ताजा उदाहरण देश में घटी दो घटनाएं है,एक जो उत्तर प्रदेश के लखीमपुर में घटित हुई और दूसरी छत्तीसगढ़ में निर्दोष भीड़ पर तेज रफ्तार से कार चढ़ाने का। ट्रेन्ड बिल्कुल नया है शायद हमें इस तरह की और घटनाएं देखने को मिले।कारण सामाजिक सुरक्षा, आम जनमानस की सुरक्षा और अपराधियों पर शिकंजा कसने का काम देशकाल स्थिति के अनुसार वहां शासन कर रही सरकार का होता है जिसे अपराध के विरुद्ध एक्शन लेना होता है। अपराध किस श्रेणी का है? अपराधी की मानसिकता किस श्रेणी की है ?इसे देखते हुए दंड का प्रावधान होता है और किया जाना चाहिए।
अब सोचने वाली बात यह है क्या चलती निर्दोष भीड़ पर जानबूझकर कार चढ़ा देना किस अपराध की श्रेणी में गिना जाएगा? क्या यह एक जघन्य अपराध है ?और यदि है तो इसके विरुद्ध दांडिक प्रतिक्रिया उसी श्रेणी की है या नहीं ?यदि दंड का विधान उस श्रेणी का नहीं होगा तो अपराधियों के हौसले बुलंद हो जाएंगे और ऐसी घटनाओं की पुनरावृति देखने को बार-बार मिलेगी। आइए अब वास्तविकता पर बात करते हैं लखीमपुर घटना के बाद घटना को लेकर सियासत जोरों पर रही लेकिन सरकार द्वारा दंडात्मक कार्यवाही और निष्पक्ष त्वरित जांच की कमी ने अप्रत्याशित रूप से घटना की पुनरावृति बहुत ही जल्दी करा दी। जैसा कि हम सभी ने छत्तीसगढ़ में हुई घटना के दौरान देखा। क्या ऐसे अपराधियों का सुधार किया जा सकता है? क्या यह अपराधी मनुष्य की श्रेणी में गिने जाएंगे? ऐसा तो एक पागल उन्मत्त जानवर ही कर सकता है ।और समस्त मनुष्य जाति को अच्छी तरह पता है यदि कोई जानवर पागलपन और उन्मत्ता की इस सीमा तक पहुंच जाए तो उसके साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाता है। फिर उस घटना को देखने वाले प्रत्यक्षदर्शी और अप्रत्यक्षदर्शी प्रभुता धारी मनुष्यों को किस श्रेणी में रखा जाएगा? मतलब बिल्कुल स्पष्ट है या तो हम जंगलराज के बीच सांसे ले रहे हैं या फिर हम अपने कर्तव्य से विमुख होकर अपने लिए 12वीं शताब्दी वाली व्यवस्था को एक बार फिर से आमंत्रण दे रहे हैं। मतलब अपने विनाश को सहर्ष आमंत्रण दे रहे हैं
( एडीटर डॉ. आर्यप्रकाश मिश्रा)