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सम्पादक की कलम से आई जी आर एस का सच

 सम्पादक की कलम से


आई जी आर एस का सच 


इनफॉरमेशन गेदरिंग एंड रेट्रीवल सिस्टम बनाया तो जनता की सेवा के लिए लेकिन आखिरकार इसका पूरा सच क्या है,जो हम आपको बताते हैं,वास्तविकता में आईजीआरएस का प्रयोग उन लोगों के लिए है,जो थाने तक नहीं पहुंच सकते और अपनी शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं, तुरंत कार्यवाही के लिए। लेकिन पिछले कुछ समय से यह देखने में आया है,कि आईजीआरएस पर की गई कंप्लेन में पुलिस पीड़ित तक पहुंचती ही नहीं बिना किसी इनफॉरमेशन गेदरिंग  मतलब सूचना इकट्ठा किए बिना ही आईजीआरएस पर आख्या देखने को मिल जाती है, 

वह भी पूरी तरह से मनगढ़ंत एक कहानी के तौर पर क्या यही इसका सही उपयोग है, आम पब्लिक को मास्क न लगाने की सजा मिल जाती जबकि यह उसका अपना अधिकार है।वह मास्क लगाएं या ना लगाएं यह उसके अपने जीवन की बात है, वह सुरक्षा अपने जीवन की करें अथवा ना करें लेकिन फिर भी सरकार का उस पर एक दबाव है, यदि उसने मास्क नहीं लगाया तो 100 से लेकर 500 तक का जुर्माना ठोका जा सकता है,लेकिन अगर एक पुलिस वाला कोई भी गलती करता है,तो उसके खिलाफ सजा का कोई प्रावधान ही नहीं होता हां जांच जरूर की जाती है, वह भी उन मसलों में जो जांच का विषय ही नहीं होते 

अब आईजीआरएस पर आते हैं पुलिस के द्वारा आईजीआरएस पर आंख्या लगाने की री इंक्वायरी क्यों नहीं की जाती आखिरकार आख्या सही लगी या गलत इसका जिम्मेदार कौन होता है, 

अब आपको एक कि प्वाइंट की बात बताते हैं, जब तक समाज को भ्रष्टाचार मुक्त नहीं किया जाएगा तब तक किसी भी कानून का दुरुपयोग ही होगा केवल ताकतवर लोग इन कानूनों का उपयोग करके आम गरीब जनता को सिर्फ सताएंगे ही चाहे वह पुलिस ही क्यों ना हो भ्रष्टाचार पर समाज को मुक्त तभी किया जा सकता है,जब शिक्षा के स्तर में अभूतपूर्व बदलाव किए जाएं वह चीज पढ़ाई जाए जिसका जीवन में उपयोग हो। 

वर्तमान शिक्षा प्रणाली के चलते भ्रष्टाचार से मुक्ति कभी नहीं मिलेगी पिछले चार दशकों में जिस गति से भ्रष्टाचार आगे बढ़ा है, इसे रोक पाने में सिर्फ शैक्षिक स्तर में परिवर्तन ही सक्षम हो सकता है, कहीं ना कहीं इसके लिए पार्शियल पॉलिटिक्स भी जिम्मेदार होती है।जब तक लोगों को न्याय व्यवस्था पर यकीन नहीं होगा तब तक भ्रष्टाचार का उन्मूलन संभव ही नहीं होगा फिर ऐसे में आईजीआरएस का क्या महत्व जब सीधे-सीधे थाने स्तर पर एक आम आदमी को f.i.r. कराने में नाको चने चबाने पड़ते हैं, उस पर यदि f.i.r. लिखी भी गई तो संबंधित अधिकारी के मन मुताबिक लिखी जाती है, पीड़ित पर क्या गुजरी इससे कोई मतलब नहीं अब इस व्यवस्था में किसी भी शक्ति का क्या मतलब किसी भी कानून का क्या मतलब किसी भी न्याय व्यवस्था का क्या मतलब है,और किसी भी सरकार का क्या।


एडीटर इन चीफ: सुशील निगम


मतलब रामभरोसे खाओ समोसे लेव डकार और करो पुकार 


यदि ऐसा ना होता तो उत्तर प्रदेश में जो महिलाओं के बीच चीख-पुकार चित्कार सुनाई दे रहा है, इसके लिए कौन किस को जिम्मेदार ठहराया कौन सी सरकार इतनी जिम्मेदारी लेगी कौन सी न्याय व्यवस्था की जिम्मेदारी लेगी या प्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था इसके लिए स्वयं पर कोई बोध लेगी आप सही सोच रहे हैं, इस समय सबका उत्तर ना में ही होगा आखिरकार इस व्यवस्था का हम क्या करें कहां जाएं किस से कहें इसे ही अराजकता का नाम दिया जाता है,और अराजकता की मंजिल क्रांति होती है, शांति का मतलब जनता का सड़कों पर उतर आना हो सकता है,भारत के भविष्य में एक और क्रांति लिखी हो हम कल भी गुलाम थे हम आज भी गुलाम है फिर से स्वतंत्रता के प्रेमियों के प्रेम का जलजला आ सकता है, हम सभी को इसके लिए तैयार रहना होगा ठीक उसी तरह जैसे हम कोरोना के लिए तैयार हो गए हम ने जमकर कोरोना से लड़ाई लड़ी इसी तरह भविष्य में हमें भ्रष्टाचार से भी लड़ाई लड़नी पड़ सकती है,हां सरकार कल भी हमारे साथ नहीं थी और सरकार कल भी हमारे साथ नहीं होगी हमने कल भी पुलिस के डंडे खाए हमें कल भी पुलिस के डंडे खाने पढ़ सकते हैं, लेकिन हमें लड़ना होगा यही हमारी परिणिति हैं।

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Shushil Nigam

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