संपादक ;- डॉ. आर्यप्रकाश मिश्रा की लेखनी से जंगलराज और शेर
कहानी एक हरे-भरे जंगल की है जिसमें एक शेर का राज था बाकायदा शेर का अपना मंत्रिमंडल था जिनके लिए सभी सुविधाएं मुहैया थी कुछ जंगली जानवर जो रसूखदार थे या यूं कहें कि मंत्रिमंडल और शेर के रिश्तेदारों के रिश्तेदारों के रिश्तेदारों के रिश्तेदार थे जो खुद को मंत्रिमंडल का बाप समझते थे उन्होंने अपने पंजे के नाखून बढ़ाने शुरू किए और इतने लंबे कर लिए कि जंगल के सामान्य प्राणी तो उन नाखूनों को देखकर ही या तो अपनी गर्दन डाल देते थे या अपना सब कुछ छोड़ कर भाग खड़े होते थे शेर को यह बात पता चली तो उसने जिन कुत्तों को जंगल की रखवाली के लिए छोड़ रखा था उनके सरदारों को बुलाकर एक मीटिंग की और उन्हें इन रसूखदारों को सबक सिखाने के लिए खुली छूट दे डाली।
फिर क्या था देखते ही देखते कुत्ते और कुत्तों के सरदार साथ में कुछ सियार भी बड़े ताकतवर बन गए और पैसे वाले भी अब उन्होंने जंगल के सामान्य जानवरों की समस्याओं पर विचार करना ही छोड़ दिया कुत्ते अपने चक्रव्यू में फसाकर सामान्य जानवरों का शोषण करने लगे हां दो एक रसूखदारों की कुत्तों ने मिलकर ऐसी की तैसी की लेकिन अब बड़े रसूखदारों के पास तो बड़ी-बड़ी हड्डियां थी कुत्तों को देने के लिए लिहाजा उन हड्डियों के लालच में कुत्तों ने शेर तक सूचनाएं पहुंचाना ही बंद कर दिया अब कुत्ते भी हड्डियां खा खा कर के शेर की तरह फूलने लगे जंगल के जानवरों के बीच अराजकता सी फैल गई जंगल की शांति भंग हो गई शेर का ध्यान जंगल के अंदरूनी तथ्यों की तरफ ना जाए इसलिए चालाक लोमड़ी मंत्रिमंडल ने शेर का ध्यान बाहरी दुश्मनों की तरफ आकर्षित रखा।
कुत्तों के अत्याचारों से परेशान निरीह जानवर शेर के दरबार तक पहुंच ही ना पाते अब तो कुत्तों का हौसला और भी बुलंद हो गया किसी भी जानवर को पकड़ लेते उसको हिस्ट्रीशीटर बनाने का चाकू दिखाते और उसका घोंसला बिकवा कर खा जाते और जो हिस्ट्रीशीटर टाइप के खतरनाक जंगली प्राणी होते उनसे हड्डियां लेकर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचा देते एक आध को तो इन्हीं लालची कुत्तों ने रसूखदार बताकर उनकी शिकायत करने वालों को भी नोच डाला और उन भेड़ियों का महिमामंडन भी करने लगे।
उधर शेर कुत्तों को खुली छूट देकर भूल गया शेर ने इतना भी ना सोचा कि कम से कम कुत्तों पर नजर ही रखी जाए कहीं सारे कुत्ते दी गई छूट का गलत फायदा तो नहीं उठा रहे हैं, ऐसा नहीं है की शेर ने निगरानी रखने हेतु कोई व्यवस्था ना की हो बाकायदा बंदरों की एक सेना शेर के जंगल राज में विजिलेंस विभाग के रूप में काम कर रही थी बाकायदा उन्हें भी हर मौसम के पके फल और एक एक बाग की धरोहर दी गई थी लेकिन सारे बंदर बाग के बड़े बड़े सुंदर वृक्षों की ठंडी छाया में फल खाकर ऊंघने लगते और सोए पड़े रहते शेर ने उनसे भी कभी पलट कर नहीं पूछा आखिर उनकी तरफ से कोई शिकायत क्यों नहीं आती अगर शेर पूछता भी तो बंदर यह कैसे बताते कि कुत्तों ने और कुत्तों के सरदारों ने एक विस्मयकारी पेय बनवा रखा था जिसे वे सभी विभागों में समय-समय पर बटवा दिया करते थे जिसके चलते बंदरों का विभाग साथ ही साथ और सारे विभाग भी शांत पड़े रहते थे शेर तक कोई सूचना पहुंचने ना देते और शेर का मंत्रिमंडल शेर के समक्ष पहुंचते ही दांत निकाल कर दुम हिलाने लगता और 7 बार सलाम ठोकता शेर भी आश्वस्त हो जाता जब मेरा मंत्रिमंडल मस्त है तो जंगल का प्रत्येक जानवर भी मस्त होगा।
कुत्ते पूर्णतया अनियंत्रित और निरंकुश हो चुके थे अब वह सिर्फ हड्डी वाले जानवरों की बात सुनते थे और उन्हें खुली छूट दे देते लिहाजा हरे-भरे जंगल का राज्य तंत्र अराजक तंत्र में तब्दील होता जा रहा था हर बड़ा जानवर अकारण ही छोटे जानवर को मारकर खाने लगता मगर शेर तो हमेशा की तरह मंत्रिमंडल के दांत और उनकी दुम देखकर ही आश्वस्त रहता
इधर दूसरे शेर जो जंगल का राजा बनना चाहते थे उन्हें कुछ ऐसे मौकों की तलाश रहती थी वह भी कुछ भेड़ियों और लकड़बग्घों की टीम बनाकर शेर की फिराक में रहते लेकिन क्योंकि कुत्तों को इतनी छूट मिली हुई थी तो कुत्ते और कुत्ते के सरदार शेर से बहुत खुश थे इसलिए यह टुटपुँजिया शेर अपनी टीम सहित होकर भी राजा शेर का शिकार करने में असमर्थ हो रहे थे।
अब एक ऐसे शेर की जरूरत थी जो सार्वजनिक रूप से इन कुत्तों की एक सेना बनाता उन्हें और छूट देने का लालच देता और बड़ी बड़ी हड्डियां बटवाता तो पहले की तरह हड्डियां चूस चूस कर सांड की तरह फूल गए कुत्तों को मिलाकर जंगल की सत्ता को आसानी से पलट सकता क्योंकि जंगल तंत्र में जो भी राजा आपने शासन प्रशासन पर नियंत्रण नहीं रखता उस पर अंकुश नहीं लगाता उसे एक दिन हार का मुंह देखना ही पड़ता और हो सकता था कि कैद का स्वाद भी मिल जाता समय-समय पर गुप्त रूप से अपने बड़े छोटे सभी कर्मचारियों पर नजर बनाए रखने की आवश्यकता का अभिप्राय उस गधेनुमा शेर को तभी समझ आता——
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