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शिक्षा मित्र, सरकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विशेष –


शिक्षा मित्र, सरकार और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विशेष –


        साथियों,
               जो एक समय में शिक्षा की डूबती नौका के पतवार बने थे  आज उनकी नौका बिन पतवार के हो गयी है।जिन शिक्षा मित्रों ने शिक्षा व्यवस्था की डूबती नौका को उस वक्त बचाया था आज उनकी डूबती हुयी नौका को बचाने वाला कोई नही है।शिक्षा मित्र राजनीति के शिकार होकर आज फिर राजनीति का  मुद्दा बन गये हैं।

           शिक्षा मित्रों की स्थिति धोबी के उस कुत्ते जैसी हो गयी है जो न घर का रहता है और न घाट का रह जाता है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिक्षा मित्र अपने को ठगा असहाय महसूस कर रहा है।सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा मित्रों की सोच व उम्मीद के विपरीत निर्णय देकर उन्हें आसमान से लाकर जमान पर पटकथा दिया है।शिक्षा मित्र उच्च न्यायालय के निर्णय के खिलाफ यह सोचकर सुप्रीम कोर्ट गये थे कि जो भूल उच्च न्यायालय से हुयी है उसे वह ठीक करके राहत दे देगा।लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चौबे से छब्बे बनने गये शिक्षा मित्रों को दूबे भी नहीं रखा।जो उनका मूल शिक्षा मित्र का पद था वह भी ले लिया और समायोजन रद्द करके उन्हें शिक्षक से बेरोजगार बना दिया।

           दुख तो इस बात का है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिक्षा मित्र कहीं के नहीं बचे हैं।शिक्षा मित्रों पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा है और इस समय उनकी समझ में कुछ नहीं आ पा रहा है।उन्हें अपना भविष्य अंधकारमय दिखाई पड़ने लगा है।सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कुछ शिक्षा मित्रों की बहनों बेटियों की शादी कैंसिल हो गयी तो कुछ का नया घरौंदा ही टूट गया है।शिक्षा मित्र इस सदमें को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं तथा असामायिक मौतों का सिलसिला शुरू हो गया है।शिक्षा मित्रों को यह दर्द राजनीति ने दिया है और आज फिर उन्हें राजनीति का मुद्दा बना दिया गया है।सरकार ने अगर सोच समझकर नियम कानून को जानकर इन्हें शिक्षा मित्र से शिक्षक बनाया होता तो आज अदालत को समायोजन रद्द करने की नौबत नहीं आती। इनका समायोजन करके इन्हें शिक्षा मित्र से शिक्षक तो बनाकर तो दिया गया लेकिन औपचारिकताओं को पूरा नहीं किया गया।

          इसमें शिक्षा मित्रों का क्या दोष है? उन्होंने तो सरकार के कहने पर शिक्षा मित्र पद से इस्तीफा दिया था अपनी इच्छा से नहीं दिया था।उस समय सरकार चाहती तो इनके मूलपद को सुरक्षित रख सकती थी।यदि आज शिक्षा मित्रों का मूल पद ही सुरक्षित रहता तब भी वह स्कूल जाने लायक रहते।एक सरकार ने चौबे को छब्बे की जगह दूबे बना दिया तो वर्तमान सरकार का दायित्व बनता है कि वह कुछ नहीं तो कम से कम इनकी रोजी रोटी व सम्मान तो बचा ही ले।इनका वेतन बढ़ाकर शिक्षा मित्र पद पर या फिर पैराटीचर के रूप में इन्हें रोजी प्रदान करें।शिक्षा मित्रों की स्थिति-” खेत चरै गदहा औ मारे जाय जुलाह” जैसी हो गयी है।यह सही है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद शिक्षा मित्रों का विश्वास न्याय से उठ गया है और उन्हें अपनी आंखो के सामने अंधकार दिखाई पड़ रहा है।सरकार को ध्यान रखना चाहिए कि बेरोजगारी ही अपराध और अराजकता की जननी होती है।धन्यवाद।। भूलचूक गलती माफ।। सुप्रभात/ वंदेमातरम्/ गुडमार्निग/ अदाब/ शुभकामनाएँ।। ऊँ भूर्भवः स्वः——-/ ऊँ नमः शिवाय
             

                                                   भोलानाथ मिश्र 
                                              वरिष्ठ पत्रकार/ समाजसेवी
                                              रामसनेहीघाट,बाराबंकी यूपी
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Shushil Nigam

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