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शराब से सगाई पान गुटखा बीड़ी से लड़ाई

शराब से सगाई पान गुटखा बीड़ी से लड़ाई

शराब तो पिलाई और शबाब की कब होगी भरपाई

अब होगी सरकार की अच्छी कमाई

सुशासन और अच्छे दिन शराब की बोतल के अंदर
सुबह से लगी लाइनें ना आया किसी को चक्कर,
ना हुआ कोई बेहोश
अमीर गरीब की पटी खाई ,घर के अंदर की लक्ष्मी बाहर आई
कोई नहीं गरीब फिर मुफ्त का राशन किसने खाया
बहुत बड़ा सामायिक और प्रासंगिक सवाल शायद बीजेपी सरकार का पहला गलत फैसला

कानपुर 4 मई 2020 :- बहुत ही निर्मम और 
अप्रासंगिक फैसला लॉक डाउन के दौरान सरकार द्वारा लिया गया समस्त भारतवर्ष में शराब की दुकानों को 
जनता के लिए खोल दिया गया समस्त पाठकों एवं 
दर्शकों ने अभी तक देशभर में शराब के लिए लालायित जनता के सुकर्मों को लाइनों के बीच मारामारी को किसी 
ना किसी पर्दे पर जरूर से जरूर देख ही लिया होगा एक कहावत है।हमारे सनातन धर्म की ऊपर से भगवा चोला पहन लेने से कोई संत नहीं होता अंदर का हृदय भी भगवे 
रंग में सराबोर हो होना चाहिए और वह भगवा रंग व्यक्ति 
के विचारों एवं आदर्शों से फैसलों के रूप में प्रकट भी 
होना चाहिए शराब की दुकानें खोलकर शैतानों को रोड 
पर नाचने के लिए सरकार आमंत्रण दे बैठी पिछले 40 
दिनों से भारतवर्ष एक शांतिप्रिय देश के रूप में लाक 
डाउन की अवधि पूरी कर रहा था लेकिन एकमात्र शराब बहुत बड़ा भूचाल लेकर जो शराबियों के घरों से पैदा होकर पुलिस थानों तक थरायेगी और निर्दोष वह मासूम परिवारों पर बिजली की तरह कड़कड़ाएगी हा शायद केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की राजकोष परिपूर्ण कर देंगे एक फैसला जो पूरी तरह से लाक डाउन को प्रभावित करेगा सरकार द्वारा लिया गया फिर उन निर्दोषों और मासूमों पर बरसाई गई लाठियों का क्या मतलब रहा वह सब्जी और फल वाले जिन के ठेले पलटा दिए गए इन सब कृत्यों को कुकृत्य में सम्मिलित कर दिया जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। भारत भूमि को देव भूमि कहा जाता है, यहां पर 
कुछ मुट्ठी भर लोगों की मांगों को जनता की मांग करार 

देकर फैसले लेना अनुचित है, भोली भाली जनता अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु पूरी तन्मयता और निष्पक्षता के साथ उन बुद्धिजीवियों का चयन करके सरकार के रूप में गठित करती है।और उनसे यह उम्मीद करती है, कि वह सर्वदा उनके हित में ही फैसले लेगी अगर सिर्फ राजस्व की बात है।और भी बहुत जहरीले पदार्थ बाजार में सरकार की नजरों से बच कर बेचे जाते हैं,यह और बात है, कुछ लोग देख कर भी उन चीजों को अनदेखा करते हैं।उनकी भी बिक्री सरकार चालू कर दें तो राजस्व और अधिक मात्रा में बढ़ जाएगा लेकिन ज्ञात रहे बहुत से सैनिक संस्थानों द्वारा यह शिकायत आई थी देश के नवयुवक मिलिट्री और सैनिक संस्थानों में भर्ती हेतु आवश्यक योग्यताओं की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं, उनके शारीरिक सौष्ठव में कुछ ऐसी कमियां पाई गई है, जो उन्हें उस क्षेत्र में अयोग्य निर्धारित करती हैं, दूसरी बात यह है।कि वह दुकानदार जो रोजमर्रा की वस्तुएं बेचते हैं,लॉक डाउन के नाम पर पुलिस ने उनका शारीरिक और आर्थिक दोनों तरह से शोषण किया धिक्कार है, ऐसे शासन को जो पुलिस वालों की मौजूदगी में शराब बिकवा सकता है, यह कौन से अच्छे दिन है

चीफ एडीटर :- सुशील निगम

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Shushil Nigam

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