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राष्ट्रीय पर्व राष्ट्रीयगान राष्ट्रीय तिरंगा और मदरसा स्कूल पर विशेष-
साथियों,
भारत ऐसा इकलौता राष्ट्र है जहाँ पर विभिन्न धर्मों सम्प्रदायों के लोग एक साथ भारतीय के रूप में रहते हैं।जिस तरह हर राष्ट्र का अपना झंडा होता है उसी तरह उसका राष्ट्रगान भी होता है जो सभी देशवासियों को मान्य होता है।जो झंडे व राष्ट्रगान को स्वीकार नहीं करता है वह उस देश का नागरिक नहीं हो सकता है।हमारे यहाँ इस समय झंडे और राष्ट्रगान को लेकर राजनीति हो रही है।कोई भारत माता की जय करने से नफरत करता है तो कोई राष्ट्रगान से नफरत करता है तो कोई तिरंगे को स्वीकार नही करता है।इसके बावजूद वह अपने को भारतवंशी राष्ट्रप्रेमी होने का दावा करता है।ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो इस तरह की हरकतें करके फिरकापरस्ती को बढ़ावा देते हैं।
जम्मू काश्मीर एक ऐसा राज्य है जो राष्ट्रीय तिरंगे की जगह अपना झंडा इस्तेमाल करता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।झंडा और राष्ट्रगान देशवासी होने की पहचान होता है।जम्मू काश्मीर में ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हमारे राजनेताओं ने उसे विशेष दर्जा दे रखा है।वहाँ पर झंडा ही नहीं बदला है बल्कि वहाँ पर भारतीय संविधान भी पूरी तरह से लागू नहीं होता है।जम्मू काश्मीर में ऐसा विशेष परिस्थितियों में होता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए।जम्मू काश्मीर की तर्ज पर कुछ मदरसे भी ऐसे हैं जहाँ पर राष्ट्रगान नहीं होता है और राष्ट्रीय भाषा की जगह अरबी फारसी पढ़ाई जाती है।यह पहला अवसर है जबकि सभी मदरसों में स्वाधीनता दिवस के अवसर पर सभी मदरसों में राष्ट्रगान के आदेश दिये गये हैं और वीडियो रिकार्डिग करायी गयी है।इसके बावजूद कुछ ऐसे सिरफिरे काफिर हैं जिन्होंने इतनी सख्ती के बावजूद राष्ट्रीय गीत नहीं गाया गया।राष्ट्रगान एक होता है जो सभी देशवासियों को मान्य होना चाहिए।दूसरी तरफ तमाम ऐसे भी मदरसे हैं जहाँ पर राष्ट्रगान हुआ और स्वाधीनता दिवस धूमधाम से मनाया गया।हम ऐसे राष्ट्रप्रेमी मदरसों एवं उनके संचालकों को धन्यवाद देना चाहते हैं
जिन्होंने राष्ट्रीय एकता का परिचय दिया गया।राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सभी सरकारी व गैर सरकारी शैक्षिक संस्थाओं में एक ही पाठ्यक्रम होना अनिवार्य है फिर भी कुछ मदरसे ऐसे हैं जहाँ पर राष्ट्रीय पाठ्यक्रम नही पढ़ाया जा रहा है।दोहरा पाठ्यक्रम व दोहरी शिक्षा व्यवस्था देश हित में नहीं होती है।राष्ट्रीय नीति के तहत पूरे देश में एक पाठ्यक्रम होना अनिवार्य होता है।जो ऐसा नहीं करता है उस पर राष्ट्रद्रोह का मुकदमा चलाकर उसकी नागरिकता समाप्त करने की जरूरत है।जिन मदरसों ने सरकार के आदेश के बावजूद राष्ट्रीय गीत के साथ ध्वजारोहण नहीं किया गया है उनके खिलाफ ऐसी कार्यवाही होनी चाहिए जो भविष्य के लिये एक मिशाल बन जाय ताकि भविष्य में ऐसी हरकत व मनमानी करने की जुर्रत न कर सके।
जिसे राष्ट्रगान व तिरंगे से नफरत है उसे स्वतः देश छोड़कर चला जाना चाहिए क्योंकि एक देश में दोहरी शिक्षा व्यवस्था नहीं लागू हो सकती है।सरकारी गैर सरकारी विद्यालय हो चाहे मदरसे हो सभी विभिन्न भाषाओं में शिक्षा तो दे सकते हैं लेकिन राष्ट्रीय पर्व राष्ट्रीय झंडे और राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध कोई नही कर सकते हैं।राष्ट्रीय ध्वज राष्ट्रीय परम्पाओं एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश की पहचान होती है और जिन लोग ऐसा नहीं मानते हैं उन्हें अपने को भारतीय कहलाने का कोई हक नहीं है।आज हमारे तमाम कुछ मदरसे राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में लिप्त होते है और राष्ट्र विरोधी लोगों को संरक्षण देने के प्रकाश में आये है।
भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/ समाजसेवी
रामसनेहीघाट,बाराबंकी उ.प्र.
(लेखक एक स्वतंत्र स्तम्भकार हैं)