मरती मानवता नहीं छोड़ रही जानवरों को भी
लगातार जानवरों पर हो रहे अत्याचार की आ रही खबरें
कभी कुत्ता कभी गोवंश और अब हथिनी पर क्रूरता की हद पार करते हुए मनुष्य का आक्रमण
भारत वर्ष : बीते कुछ समय से मनुष्य कि मनुष्यता अपने मूल्य स्वभाव को भूलकर एक अनजान क्रूर चेहरे को अपना बैठी है। जिसमें मानव ही नहीं अबोध और मासूम जानवर भी उसकी भेंट चढ जाते हैं। कभी जिभ्या के स्वाद हेतु कभी मनोविनोद के लिए और कभी पैसा कमाने के लिए जिसे दूसरी भाषा में जानवरों की तस्करी या दूसरे माध्यमों के नाम से जाना जाता है। सभी को पता है, बकरी, मुर्गा और कबूतर प्रजाति के जानवर एक विशेष समुदाय द्वारा भोजन के रूप में प्रयोग में लाए जाते हैं। दूसरा कारण मनोविनोद है, अर्थात अपने मन की प्रसन्नता के लिए किसी जानवर की जान ले लेना अभी कुछ दिन पहले फेसबुक पर दो किशोरावस्था के बालक एक कुत्ते के पैर बांधकर उसे तालाब में फेंक देते हैं।और इसमें उन्हें हर्ष का अनुभव होता है, यह मानव जाति के चित्त का क्रूर चेहरा आखिर क्या दर्शाता है,इन बालकों को किस प्रकार की शिक्षा और संस्कार भारतवर्ष की संस्कृत ने प्रेषित किए हैं, तीसरा एक अहम कारण धन उपार्जन के लिए निरीह पशुओं की बलि चढ़ा देना जैसे आप लोगों ने बहुत आयत में कछुओं की तस्करी के बारे में सुना होगा निरीह कछुओं का शिकार मात्र पैसे कमाने के लिए किया जाता है। कछुए ही नहीं हिरण,गोवंश,सर्फ, मछ, मोर, हाथी, तेंदुए इत्यादि जानवर मानव की लालच की भेंट चढ़ जाते हैं,और हमारे देश भारत में जानवरों पर दया करने की परंपरा का अंत हो जाता है। अभी हाल में वायरल हथिनी केस में भी दो कारण हो सकते हैं,एक तो मनोविनोद और दूसरा एक हाथी मरने के बाद भी बहुत महंगा जानवर होता है। ऐसे प्रकरण को लेकर भारत में कभी कोई समुचित कानून प्रकाश में नहीं आया लेकिन ऐसे क्रूरतम कृत्यों के लिए ऐसे कानूनों का होना भी जरूरी है।ताकि मासूम जानवर भी खुली हवा में सांस ले सकें।
एडीटर इन चीफ :- सुशील निगम