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भगवान का गोकुल में जन्मोत्सव बाल कृष्ण लीला
गोकुल में नंदबाबा जी प्रधान थे, जब लाला के जन्म लेने में आठ दिन बाकी थे, तब ब्रह्माण नन्द बाबा के घर आये, तो बाबा ने उनसे पूछा – हे ब्राह्मणदेव ! आप देखकर बताये कि लाला के जन्म लेने मे कितना समय है, तब ब्राह्मणों ने पंचांग में देखकर बताया कि आज से आठवें दिन,अष्टमी तिथी को, रोहिणी नक्षत्र में, आपके यहाँ लाला का जन्म होगा, इतना कहकर ब्राह्मण चले गए .
नन्द बाबा ने सोचा मेरे लाला को जन्म लेने में केवल आठ दिन बचे है और हमने तो कुछ तैयारी भी नहीं की, सारे ब्रजवासी तैयारी करने लगे, कब आठ दिन निकल गए, पता ही नहीं चला. दिनभर राह देखते-देखते शाम हो गयी, आठ बजे सब नौकर-चाकर बाबा से कहने लगे – बाबा अब तो रात हो गयी, लाला का जन्म अब तक नहीं हुआ हमें तो नीद आने लगी हम तो सोने जा रहे है.
बाबा ने कहा – ठीक है आप सो जाईये जब लाला का जन्म हो जायेगा तो हम आप सब को जगा देगे, एक घंटे बाद नौ बजे, नन्द बाबा की आँखों में भी नीद आने लगी. उनकी बहिन सुनंदा थी,
नन्द बाबा ने कहा – बहिन अब तो हमें भी नीद आने लगी है.लाला को जन्म अभी तक नहीं हुआ.सुनंदा ने कहा – भईया ! जब लाला को जन्म हो जायेगा, तब हम आपको जगा देगे, नन्द बाबा भी सो गये, एक घंटा और निकला दस बजे, सुनंदा की आँखों में भी नीद आने लगी, सुनन्दाजी कहने लगी – भाभी मेरी आँखों में तो नींद आने लगी है.
यशोदा जी कहने लगी – आप सो जाओ, जब लाला का जन्म हो जायेगा तो मैं आपको जगा दूँगी, वही पास में सुनंदा जी सो गयी, एक घंटा और निकला तो ग्यारह बजे, यशोदा जी की आँखों में भी नीद आने लगी और लाला की मईया भी सो गयी, ये सब लोग क्यों सो रहे है ? क्योकि योगमाया जी आ रही थी, उनका काम ही जीव को सुलाना है, जैसे ही बारह बजे वासुदेव आये और कौतुक करके चले गए लाला को सुलाकर लाली को ले गए.
भगवान ने पहली बार अपने कमल के से नेत्र खोले अब भगवान जहाँ-जहाँ कान लगते खर्राटो की आवाज आती,भगवान ने सोचा ये ब्रजवासी कितने भोले है इनके यहाँ लाला का जन्म हो गया और ये सब सो रहे है ये नहीं की उठकर नाचे गाये,यहाँ तो मेरी मईया भी सो रही है कैसे इन्हें जगाऊँ?
भगवान ने रोना शुरु किया, ऊँ-ऊँ-ऊँ की ध्वनि निकल पड़ी, जैसे कोई तपस्वी अपनी साधना शुरू करने से पहले प्रणव का उच्चारण करता है ऐसे ही भगवान ब्रज में अपनी लीला शुरू करने से पहले प्रणव नाद कर रहे हो .
जैसे ही रोने की ध्वनि यशोदा जी ने सुनी तो झट से सुनंदा जी से कहा – बहिन बधाई-है-बधाई, लाला को जन्म हुआ. झट सुनंदा जी उठी और बाबा के पास जाकर बोली, भईया बधाई-है-बधाई लाला को जन्म हुआ बाबा नन्द ने जैसे ही सुना तो शरीर का कुछ होश नहीं, झट प्रसूतिका ग्रह की ओर भागे जा रहे है
यशोदा जी ने कपडो से भगवान को ढक लिया, बाबा से बोली पहले कुछ मुहँ दिखाई दो, बाबा ने कहा जैसे तुम्हारे लाला होगे वैसे ही मुहँ दिखाई दे दूँगा, झट यशोदा जी ने कपड़ा हटाकर लाला का दर्शन कराया बाबा कहने लगे तुम्हारे इस लाल पर तन-मन-धन सब कुछ बार दूँ .
“ नंद्स्त्वत्मज उत्पन्ने जातह्मदो महामनाः आहूय विप्रान् वेदज्ञान् स्न्नातः शुचिरलंकृतः ..”
नन्द बाबा बड़े मनस्वी और उदार थे, पुत्र का जन्म होने पर तो उनका हृदय विलक्षण आनंद से भर गया, उन्होंने स्नान किया और पवित्र होकर सुन्दर-सुन्दर वस्त्राभूषण धारण किये, फिर वेदज्ञ ब्राह्मणों को बुलाकर स्वस्तिवाचन और अपने पुत्र का जातकर्म संस्कार करवाया, उन्होंने ब्राह्मणों को वस्त्र और आभूषणों से सुसज्जित दो लाख गौएँ दान की, रत्नों और सुनहरे वस्त्रों से ढके हुए तिल के सात पहाड़ दान किये .
ब्रजमंडल के सभी घरों के द्वार, आँगन और भीतरी भाग झाड़-बुहार दिए गये, उनमे सुगन्धित जल का छिड़काव किया गया, उन्हें चित्र-विचित्र, ध्वजा-पताका, पुष्प की मालाओं, रंग-बिरंगे, वस्त्र और पल्लवो की बन्दनवारो से सजाया गया, गाय ,बैल और बछडों के अंगों में हल्दी-तेल का लेप कर दिया गया और उन्हें गेरू आदि रंगीन धातुएँ, मोरपंख, फूलों के हार, तरह-तरह के सुन्दर वस्त्र और सोने की जंजीरो से सजा दिया गया, सभी ग्वाल-बाल बहुमूल्य वस्त्र, गहने, अँगरखे और पगडियों से सुसज्जित होकर और अपने हाथों में भेट की बहुत सी सामग्रियाँ ले-लेकर नंदबाबा के घर आये.
यशोदा जी के पुत्र हुआ है यह सुनकर गोपियों को बड़ा आनंद हुआ, उन्होंने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र,आभूषण और अंजन आदि से अपना श्रंगार किया. गोपियों के मुखकमल बड़े ही सुन्दर जान पड़ते थे, गोपियों के कानो में चमकती हुई मणियो के कुंडल झिलमिला रहे थे,मार्ग में उनकी चोटियों में गुंथे हुए फूल बरसते जा रहे थे, इसप्रकार नंदबाबा के घर जाते समय उनकी शोभा अनूठी जान पड़ती थी.
भगवान श्रीकृष्ण समस्त जगत के एकमात्र स्वामी है उनके ऐश्र्वर्य,माधुर्य,वात्सल्य सभी अनंत है जब वे ब्रज में प्रकट हुए उस समय उनके जन्म का महान उत्सव मनाया गया आनंद से मतवाले होकर गोपगण एक दूसरे पर दही,दूध,घी,और पानी उड़ेलने लगे एक दूसरे के मुँह पर मख्खन मलने लगे और मख्खन फेक-फेककर आनंदोत्सव मनाने लगे उसी दिन से नंदबाबा के ब्रज में सबप्रकार की रिद्धि सिद्धियाँ अठखेलियाँ करने लगे और भगवान श्रीकृष्ण के निवास तथा अपने स्वाभाविक गुणों के कारण वह लक्ष्मी जी का क्रीड़ास्थल बन गया.
जहाँ भगवान है वही सारे आनंद और सुख है.
*जय जय श्री राधे*