HistoricalTourismराष्ट्रीय
बुन्देलखण्ड का काश्मीर,,एक नजर बुन्देलखण्ड के काश्मीर की प्राचीन सुन्दरता पर।।
बुन्देलखण्ड भले ही आज सूखा, बेरोजगारी, पलायन एवं अति-पिछड़ेपन की भयानक समस्याओं से ग्रसित हो किन्तु बुन्देलखण्ड का अतीत स्वर्णिम रहा है बुन्देलखण्ड की कई रियासतें ऐसी रहीं हैं जो आज भी इस क्षेत्र को विश्वस्तरीय होने का आभास कराती हैं आज अपनी कलम के माध्यम से मैं सम्पूर्ण देश का ध्यानाकर्षित कराना चाहता हूँ बुन्देलखण्ड की एक ऐसी अनमोल धरोहर का जिसको बचाना एवं संवारना अति आवश्यक है बुन्देलखण्ड के महोबा जिले के अंतर्गत एक खूबसूरत नगरी है, चरखारी जिसकी सुन्दरता को देखते हुए इसे बुन्देलखण्ड के काश्मीर की संज्ञा दी जाती है यदि सरकारें इस ओर थोड़ा सा ध्यान दें तो इस क्षेत्र की न केवल बेरोजगारी दूर होगी बल्कि यहाँ से पलायन भी बहुत अधिक संख्या में रोका जा सकता है।।
आइये जानते हैं कैसे इस क्षेत्र को पलायन को रोका जा सकता है और इस खूबसूरत सी नगरी आखिर बुन्देलखण्ड का काश्मीर क्यों कहा जाता है।।
बुन्देलखण्ड एक अत्यंत वैभव सम्पन्न राजसी क्षेत्र रहा है, इस बात में कोई दोराय नहीं है तभी इस क्षेत्र में हजारों साल पुराने किले, महल, तालाब, मंदिर इत्यादि हैं ऐसा ही एक विशालकाय दुर्ग है, महोबा जिले की चरखारी नगरी में इससे सटा हुआ राजमहल है इस राजमहल के चारों तरफ नीलकमल से आच्छादित तथा एक दूसरे से आन्तरिक रूप से जुड़े- विजय सागर, मलखान सागर, वंशी सागर, जय सागर, रतन सागर और कोठी ताल नामक झीलें हैं चरखारी नगरी को वृज का स्वरूप एवं सौन्दर्य प्रदान करते कृष्ण के 108 मन्दिर- जिसमें सुदामापुरी का गोपाल बिहारी मन्दिर, रायनपुर का गुमान बिहारी, मंगलगढ़ के मन्दिर, बख्त बिहारी, बाँके बिहारी के मन्दिर तथा माडव्य ऋषि की गुफा है इसके समीप ही बुन्देला राजाओं का आखेट स्थल टोला तालाब है ये सब मिलकर चरखारी नगरी की सुन्दरता को चार चाँद लगाते हैं चरखारी का प्रथम उल्लेख चन्देल नरेशों के ताम्र पत्रों में मिलता है।।
चन्देलों के गुजर जाने के सैकड़ों वर्ष बाद राजा छत्रसाल के पुत्र जगतराज को चरखारी के एक प्राचीन मुंडिया पर्वत पर एक प्राचीन बीजक की सहायता से चंदेलों का सोने के सिक्कों से भरा कलश मिला यह धन पृथ्वीराज चौहान से पराजित होने के उपरान्त जब परमाल और रानी मल्हना महोबा से कालिंजर को प्रस्थान कर रहे थे तो उन्होंने चरखारी में छुपा दिया था। छत्रसाल के निर्देश पर जगतराज ने बीस हजार कन्यादान किये, बाइस विशाल तालाब बनवाए, चन्देलकालीन मन्दिरों और तालाबों का जीर्णोंद्धार कराया। किन्तु इस धन का एक भी पैसा अपने पास नहीं रखा। जगतराज ने ही भूतल से तीन सौ फुट ऊपर चक्रव्यूह के आधार पर एक विशाल किले का निर्माण करवाया ,जिसमें मुख्यत: तीन दरवाजें हैं ,सूपा द्वार- जिससे किले को रसद हथियार सप्लाई होते थे,ड्योढ़ी दरवाजा- राजा रानी के लिये आरक्षित था, इसके अतिरिक्त एक हाथी चिघाड़ फाटक भी मौजूद था।
अब आते हैं इस विशाल दुर्ग की सुन्दरता को देखते हैं, जिसे आजकल आम आदमी के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है ,जिस किले को एक शानदार पर्यटन स्थल होना चाहिए, वहाँ वर्षों से भारतीय फ़ौज का कब्ज़ा है, इस किले के ऊपर एक साथ सात तालाब मौजूद हैं – बिहारी सागर, राधा सागर, सिद्ध बाबा का कुण्ड, रामकुण्ड, चौपरा, महावीर कुण्ड, बख्त बिहारी कुण्ड चरखारी किला अपनी अष्टधातु तोपों के लिये पूरे भारत में मशहूर रहा है। इसमें धरती धड़कन, काली सहाय, कड़क बिजली, सिद्ध बख्शी, गर्भगिरावन तोपें अपने नाम के अनुसार अपनी भयावहता का अहसास कराती हैं। इस समय काली सहाय तोप बची है जिसकी मारक क्षमा 15 किमी है। किले के अंदर बड़े-बड़े गोदाम बने हुए हैं जिसमें अनाज भरा रहता था। यह अनाज कई वर्षों तक खराब नहीं होता था ।
जगतराज के पश्चात विजयबहादुर सिंहासन पर बैठे। साहित्य प्रेमी विजय बहादुर ने विक्रमविरुदावली की रचना की, मौदहा का किला और राजकीय अतिथिगृह- ताल कोठी का निर्माण कराया। यह कोठी एक झील में बनी है। बहुमंजिली यह कोठी अपनी रचना में नेपाल के किसी राजमहल का आभास देती है। इसकी गणना बुन्देलखण्ड की सर्वाधिक खुबसूरत इमारतों में की जाती है। विजय सागर नामक तालाब पर बनी ताल कोठी सरोवर के चहुंदिश फैली प्राकृतिक सुषमा के कारण अधिक आकर्षक प्रतीत होती है। महाराज जयसिंह के काल में नौगाँव के सहायक पोलिटिकल एजेंट मि. थामसन को चरखारी का प्रबन्धक नियुक्त किया गया। इसकी सुन्दरता देखकर थामसन ने इसी तालकोठी को सन 1862 ई. से 1866 ई. तक अपना आवास बनाया था। महाराज विजय बहादुर के पश्चात जय सिंह सिंहासन पर बैठे। इसके पश्चात मलखान सिंह आये। मलखान सिंह एक श्रेष्ठ कवि थे। उन्होंने गीता का काव्यानुवाद किया। उनकी पत्नी रुपकुंवरि एक धार्मिक महिला थीं। रामेश्वरम से लेकर चरखारी तक उन्होंने रियासत के मन्दिर बनवाए जो आज भी चरखारी की गौरव गाथा कह रहे हैं। गीत मंजरी, विवाह गीत मंजरी और भजनावली उनकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं। चरखारी का ऐतिहासिक ड्योढ़ी दरवाजा इन्ही मलखान सिंह के कार्यकाल में बना जिसे महाराष्ट्र के अभियन्ता एकनाथ ने बनवाया। राजमहल और सदर बाजार उन्हीं की देन है। आज भी चरखारी के सदर बाज़ार की राजसी बनावट लोगों को अपनी तरफ़ आकर्षित करती है । किन्तु मलखान सिंह की सर्वाधिक प्रसिद्धि उनके द्वारा प्रारम्भ किये गए 1883 ई. में गोवर्धन जू के मेले से मिली । यह मेला उस क्षण की स्मृति है जब श्रीकृष्ण ने इन्द्र से कुपित होकर गोवर्धन पर्वत धारण किया था। दीपावली के दूसरे दिन अन्नकूट पूजा से प्रारम्भ होकर यह मेला एक महीना चलता है। यह बुन्देलखण्ड का सबसे बड़ा मेला है। पंचमी के दिन चरखारी के 108 मन्दिरों से देवताओं की प्रतिमाएँ गोवर्धन मेला स्थल लाई जाती हैं। इसी दिन सम्पूर्ण देव समाज ने प्रकट होकर श्रीकृष्ण से गोवर्धन पर्वत उतारने की विनती की थी। सप्तमी को इन्द्र की करबद्ध प्रतिमा गोवर्धन जू के मन्दिर में लाई जाती है। इस एक महीने में चरखारी वृन्दावन हो जाती है |
मलखान सिंह के पश्चात जुझार सिंह गद्दी पर बैठे। इनके बाद अरिमर्दन सिंह गद्दी पर आसीन हुए | महाराज अरिमर्दन सिंह ने नेपाल नरेश की पुत्री से विवाह किया और उनके लिये राव बाग महल का निर्माण कराया जिसमें चरखारी का राजपरिवार आज भी रहता है। अरिमर्दन सिंह के पश्चात जयेन्द्र सिंह शासक हुए। ये चरखारी के अन्तिम शासक थे। इसके पश्चात रियासत का विलय भारत संघ में हुआ। इस सबका जिक्र आल्हा ऊदल एवं बुन्देलखण्ड का इतिहास नामक पुस्तक में इस तरह मिलता है-
छत्रसाल, जगतेशुजू, कीरत, पृथ्वी, मान |
विजयबहादुर, रतनसिंह, जयसिंह अरु मलखान ||
इस समय महाराज जयन्त सिंह और रानी उर्मिला सिंह रावबाग महल में रहते हैं। राजा छत्रसाल की वंश परम्परा चरखारी में इन्हीं से रोशन है। रानी उर्मिला सिंह सदरे रियासत कश्मीर कर्ण सिंह के खानदान से ताल्लुक रखतीं हैं और कश्मीर के पुंछ सेक्टर की रहने वाली हैं।
आज आवश्यकता इस बात की है इस सौदर्य की नगरी की तरफ सैलानियों कोआकर्षित किया जाये | यदि इस नगरी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर दिया जाये तो इससे करोड़ों रुपये की आमदनी के साथ साथ हजारों बेरोजगारों को रोजगार मिल सकता है | इसके लिए सबसे पहले चरखारी के विशालकाय किले को पर्यटन के लिए खोलना होगा | सेना का जो विशेष कार्य इस किले में होता है या तो उसे कहीं और स्थानांतरित किया जाना चाहिए या कुछ क्षेत्र में चलने दिया जाए | ताकि वहाँ के लोग एवं बाहर से आने वाले पर्यटक ओरक्षा, झाँसी के किलों की तरह इसे भी देख सकें | जो पर्यटक ओरक्षा आते हैं वह झाँसी के कुछ स्थल, ओरक्षा का किला, रामलला का मंदिर एवं बेतवा नदी की सुन्दरता को निहारने के पश्चात सीधे खजुराहो प्रस्थान करते हैं | जबकि महोबा से चरखारी नगर मात्र २० किमी की दूरी पर है फिरभी पर्यटक महोबा से सीधे खजुराहो प्रस्थान करते हैं | खजुराहो ही उन सैलानियों का इस क्षेत्र का अंतिम पर्यटन स्थल होता है | जबकि महोबा के बाद सीधे पर्यटकों को चरखारी की तरफ जाना चाहिए | जहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता एवं प्राचीनतम कलाकृतियों, मंदिरों, तालाबों आदि की सुन्दरता का दीदार करना चाहिए | इसी कड़ी में महोबा नगर में बनाये गए चन्देल कालीन सात विशाल तालाब भी लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिएमजबूर करते हैं | महोबा के निकट ही कबरई कस्बे में चन्देल काल में ही ब्रम्हा का बनाया गया ब्रह्मताल, जिसे अब बर्मा ताल के नाम से जानते हैं; यह भी कलाकृति का अद्भुत देखने योग्य स्थल है | इस तालाब के आस पास की जमीन को भी स्थानीय भू-माफिया कब्जाने में लगे हुए हैं | यदि इनको पुनः संवारकर विकसित किया जाए तो इस बात में बिल्कुल दोराय नहीं है कि सम्पूर्ण क्षेत्र पुनः खुशहाल हो उठेगा | किन्तु यह सब तभी संभव हो पायेगा जब प्रदेश एवं देश की सरकार इस दिशा में सार्थक कदम उठाते हुए, इस नगरी को एक वर्तमान पर्यटन स्थल का स्वरूप दे | देखने वाली बात यह कि सरकारें इस सौन्दर्य एवं राजसी स्मृतियों की गाथा को गाती नगरी को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का ऐतिहासिक कार्य करती है या फिर यूँ ही मिटा दिया जायेगा |
साभार- ‘चेतन’ नितिन खरे (महोबा)
प्रधान सम्पादक 【मयंक मिश्रा】