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बल ,बाहुबल, बाहुबली, अपराध और वास्तविकता

बल ,बाहुबल, बाहुबली, अपराध और वास्तविकता


विषय तो बहुत ही विस्तृत है बल से बाहुबली बनने तक की वास्तविकता खासतौर से एक प्रजातांत्रिक देश में आज के दौर में समझना कोई मुश्किल काम नहीं है जैसा कि आप देख ही रहे होंगे सोशल मीडिया के नाम पर हर तीसरा व्यक्ति पत्रकार हो चुका है, कुकुरमुत्ते की तरह हर गली में सिर उठाते छुटभैये नेता भी आपको दिखाई दे रहे होंगे, इस तरह से अगर उदाहरण दिए जाए तो कई चीजें सामने आएंगी आखिरकार इतनी उत्पादकता अचानक से क्यों बढी हुई हैं आइए इस पर विचार करें पहला बिंदु हमारा बल है यह किस को और कैसे प्राप्त हो जाता है आमतौर पर घर का बिगड़ैल लड़का जो सामाजिक परिवेश में उल्टे सीधे काम करता घूमता है आजकल फायदे में रहता है क्योंकि दो शाखाएं उसके लिए पूरी तरह खुली हुई है आसानी से पत्रकार बना जा सकता है और आसानी से नेतागिरी की जा सकती है पीछे चलने के लिए दो से चार शरीर चाहिए जो आसानी से मिल जाते हैं बीड़ी मसाला सिगरेट,शराब थोड़ी सी खर्च करनी पड़ती है बन गए आप नेता बन गये पत्रकार आजकल बाढ़ है, अब बात करते हैं ऐसे लोगों को बाहुबली बनने का सपना कब दिखाई देता है हमारे आज के परिवेश के नेता ऐसे लोगों को बढ़ावा देकर धीरे धीरे बाहुबली बनाते हैं और यही बाहुबली कब अपराध के दलदल में पल्लवित और पोषित होकर समाज में फूल बनकर खिलते हैं हां मगर यह फूल जरा दूसरे किस्म के होते हैं इसका एक अच्छा उदाहरण आकर्षण गेस्ट हाउस की घटना जिसने पूरे देश में ताली बजाकर  प्रजातंत्र की सच्चाई को खोला कोरोना की बुलंदी के समय हमने अपने ही लोगों के नैतिक स्तर को पूरी तरह से देखा और परखा अब ऐसे में आम जनता को यह बात क्यों समझ में नहीं आती जिस समय यह अंकुर फूट रहा होता है उसी समय इसका निदान जरूरी होता है।

देखिए हम बल से बाहुबली तक पहुंच गए अब मैं सिर्फ वास्तविकता बताऊंगा अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश में तीन घटनाएं ऐसी हुई है  एक सजेती थाना क्षेत्र दूसरी घाटमपुर क्षेत्र पतारा की घटना हुआ यूं इन तीनों घटनाओं में से एक में लड़की के साथ बलात्कार और बाद में पिता की हत्या हुई दूसरी घटना में पिता थोड़ा समझदार निकला उसने अपनी बेटी और उसके प्रेमी को ही काट डाला तीसरी घटना अभी हाल में ही हुई जिसमें नाबालिक बच्ची का अपहरण किया गया रात भर उसे अपने पास रखा गया और सुबह होते ही रहस्यमय ढंग से वह पुलिस को मिल गई और अभी तक उसके आरोपी खुले ही घूम रहे हैं आइए इन तीनों घटनाओं पर विश्लेषण करते हैं आखिर कमी किसकी कहां अपराध को इतना बढ़ावा कैसे मिल रहा है कहीं ना कहीं आम नागरिकों की अपने और अपने परिवार के प्रति लापरवाही सामने आ रही है और दूसरा जो सबसे मुख्य कारण है पुलिस अपने धर्म का निर्वाहन बिल्कुल नहीं कर रही एक बड़े ऑफिसर से लेकर एक अदने सिपाही तक की आंखों में बस एक ही सुरमा दिखाई देता है और सब की होठो पर एक ही सुर दिखाई देता है सही समय पर सही कार्यवाही ना करना वास्तविकता में सरकार को बदनाम करना है और समाज में अपराध को पल्लवित और पोषित करना भी है यदि आरोपी या अपराधी सही समय पर ना पकड़ा या दंडित किया जाए तो उसके हौसलों में जो बढ़ोतरी होती है उसका जिम्मेदार कौन होगा जाहिर सी बात है जिसके कंधों पर ये जिम्मेदारी होगी उसने अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन पूरी सच्चाई के साथ नहीं किया होगा। 

अब यह बल से बाहुबल, बाहुबल से बाहुबली और फिर नेता के रूप में किसी भी पार्टी में अपने दस्तखत हाजिर करेंगे और प्रजातंत्र के नाम पर प्रजा के ही भक्षक बन कर भोली भाली मासूम जनता के सिर पर तक्षक नृत्य करेंगे यह वास्तविकता है आज की प्रजातांत्रिक प्रणाली की।

अब सवाल उठता है कि इस दूषित प्रणाली का जिम्मेदार कौन है हमारे द्वारा चुने गए चंद नेता या चंद नेताओं द्वारा चुने गए चंद अधिकारी या विशेष अधिकारी या फिर  भारत जैसे देश की जनता के रूप में स्वयं हम या फिर ये सब——–

जंगल में फैले मकड़जाल में मकड़ी की तलाश करें भी तो कौन जो करने बैठ जाता है मकड़ी मार संस्थाएं उस पर हावी हो जाती है झूठे भ्रम फैलाती हैं अब जनता तो मासूम है खाने कमाने के अलावा कुछ जानती नहीं सरकारों के द्वारा दी जाने वाली भीख के पीछे लगी कतारों में अपनी जान गवाने वाले युवा यह नहीं समझ पाते की दो ट्यूशन पढ़ाकर वह एक हजार कमा सकते हैं सरकार द्वारा 1 महीने में ₹500 से उनका क्या भला होगा अब यह कमी किस की मतलब हमारे देश का शिक्षित युवा इतना नहीं समझ पा रहा अंधों की तरह भीड़ में बिना लाठी सरपट दौड़ता जाने कहां चला जा रहा फिर इसी तरह बल से बाहुबली अपराधी और अपराधी से नेता बनते ही रहेंगे देश ऐसे ही चलता रहेगा।

जिस देश की वित्तीय स्तिथि शराब पर निर्भर हो उस देश में रामराज की कल्पना करने वाला तो कोई मूर्ख ही हो सकता है!

उम्मीद है कि आप सभी प्रबुद्ध पाठकों ने कुछ तो समझा ही होगा

(एडीटर : डॉ0 आर्यप्रकाश मिश्र)

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Shushil Nigam

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