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पत्रकारिता दिवस

 पत्रकारिता दिवस


मनाने को मनालो पत्रकारिता दिवस वैसे भी अपने वृद्ध माता-पिता को वृद्ध आश्रम में छोड़कर लोग मदर डे और फादर डे सोशल मीडिया पर बड़ी शिद्दत से मनाते हैं, वैसे तो एक वास्तविक पत्रकार का प्रत्येक दिन ही पत्रकारिता दिवस होता है, लेकिन हम एक ऐसे परिवेश में सांस ले रहे हैं जहां पर चौथा स्तंभ कहा जाने वाला मीडिया वास्तविकता में अन्य सभी स्तंभों की तरह भ्रष्टाचार में डुबकियां पूरे सुख के साथ ले रहा है।और भी कई ऐसी बातें जो इस चौथे स्तंभ के पूर्णतया खोखले होने का संदेश देती है जैसे कि आज सुबह जब मैंने अपना फेसबुक अकाउंट खोला वैसे ही एक पोस्ट नजर आई,आज सुबह जब मैंने अखबार खरीदा तो मुझे पता चला वह पहले से ही बिक चुका है,कितना सारगर्भित वाक्य था मैं तो अवाक ही रह गया लेकिन सच्चाई समझ कर किसी तरह खून का घूंट समझकर पी गया। क्या कहूं ऐसा भी नहीं है कि ऐसे पत्रकार नहीं है जो पत्रकारिता के लिए पत्रकारिता करते हैं लेकिन अधिकांशतः (ऊपर वाले वाक्य में डूबे हुए नजर आते हैं) इसका मुख्य कारण कहीं ना कहीं प्रेस की स्वतंत्रता पर कुंडली मारे राजनीति का प्रोटोकॉल भी है, एक छोटी सी बात,आज तक आप लोगों ने कई ट्रेन एक्सीडेंट देखे होंगे लेकिन उनमें मरने वालों की संख्या सिर्फ वह लोग होते हैं जिन का रिकॉर्ड रिजल्ट यात्रियों के रूप में होता है लेकिन वह लोग जिन्होंने जर्नल टिकट खरीदा होता है वह गिनती में नहीं होते अब पत्रकारिता बेचारी क्या करें और पत्रकार बेचारा क्या करें क्योंकि अंग्रेजी शासन से निर्गत भारत की वर्तमान राजनीति भी आम इंसान को चलता फिरता कचरे का डिब्बा ही समझते हैं अर्थात स्वतंत्रता हमारे लिए उस मृग मरीचिका के समान है जो दिखती तो है पर होती नहीं और होती भी है तो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में और वह भी कहती स्वतंत्रता सच ना बोलकर किसी भी असत्य की अभिव्यक्ति को ही मान्यता प्राप्त होती है। हमारा संविधान लॉकडाउन में सब्जी वाले के ठेले को हथौड़े से तोड़ सकता है उसका सभी सामान सड़क पर बिखरा सकता है लेकिन संसद भवन में संविधान की कॉपी फाड़ने वाले को यह भी नहीं पूछा जाता कि यह आपने क्या किया ऐसे में अब काहे का पत्रकार अब काहे की पत्रकारिता और कैसा पत्रकारिता दिवस पहले तो हम पत्रकारिता को ही समझे फिर पत्रकारिता दिवस का जश्न मनाए

(यह तो बिल्कुल वैसी ही बात है) 

अंधेर नगरी चौपट राजा ।। टके सेर भाजी टके सेर खाजा

(Editor In Chief : Sushil Nigam

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Shushil Nigam

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