डॉ. आर्यप्रकाश मिश्रा- संपादक की कलम से एक बार की बात है
डॉ. आर्यप्रकाश मिश्रा- संपादक की कलम से
एक बार की बात है ——————-
बिल्लियों के सरदार को पता चला की एक चूहा अवैध तरीके से हाथी की हड्डियां बैलगाड़ी से लेकर आ रहा हैं ,और मालूम करने पर पता चला कि वह नदी की दूसरी ओर से पुल द्वारा बिल्लियों के साम्राज्य में अवैध रूप से उन हड्डियों को बेचने की फिराक में है। बिल्लियों के सरदार ने यहां तक पता कर लिया की उस बैलगाड़ी में बैलों की जगह पहिये लगे होंगे, और पहियों की जगह बैल। करीब 20 लठ्ठधारी बिल्लो को लेकर बिल्लियों का सरदार 72 घोड़ों वाले दो रथ लेकर पूरे अर्थशास्त्र के साथ पुल के इस पार छुप कर नजर रखे था। काफी इंतजार के बाद गुप्तचर ने सूचना दी कि चूहा बड़ी तेजी के साथ पुल पर पहुंचने वाला है, तो बिल्लियों के सरदार ने अपने दोनों रथ पुल के इस तरफ रास्ते पर लगा दिए। बदकिस्मती से चूहे राजा को बिल्लियों के सरदार की साजिश का पता चल गया ।नजर पड़ते ही उसे आने वाले खतरे का शत प्रतिशत आभास हो गया ।चूहे ने बैलगाड़ी को वापस मोड़ा और शुरू कर दिया भागना। पीछे से बिल्लो के सरदार ने भी पूरे दलबल के साथ चूहे का पीछा किया। लेकिन आगे जाकर कुछ दूरी पर बिल्लो के सरदार को बैल गाड़ी खड़ी मिली और हाथी की कुछ टूटी हड्डियां भी पड़ी मिली थी,जो देखने में काफी पुरानी लग रही थी।
बिल्लो का सरदार भौचक्का रह गया आखिरकार ऊपर तक बैलगाड़ी में नदी हाथी की हड्डियां रहस्यमय ढंग से कहां गायब हो गई और साथ ही साथ चूहा और उसके सहयोगी भी रहस्यमय ढंग से लापता हो गए। लेकिन जब बिल्लो का सरदार नदी पार से अपने दलबल के साथ लौटा तो उसकी मूछें तनी हुई थी और राग दरबारी में वह अपनी उपलब्धियां यानी कि हाथी की कुछ पुरानी टूटी फूटी हड्डियां गा गा कर बिचारे काम के बोझ के मारे काले कौंवो को सुना रहा था।
लेख तो समाप्त हो गया लेकिन लेखनी की किरण लेख के भाव को पूर्णतया उजागर करने में सक्षम हुई या नहीं यह तो खुद ही पाठक गण या दर्शक गण तय करेंगे। भारत माता की जय