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*किसान भगवान की दीन दशा और सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसले पर विशेष लेख ****
*साथियों,*हमारे देश में किसान को भगवान कहा जाता है । भगवान इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह इस धरती का पालनहार होता है।किसान अपनी मेहनत से धरती को चीरकर अपनी मेहनत से खेती करके मनुष्य ही नहीं पशु पक्षियों तक का पेट भरता है।किसान रात दिन कमरतोड़ मेहनत करके और अपनी जान हथेली पर लेकर अनाज पैदा करता है।जरा सी चूक होने पर उसकी जान खतरे में पड़ जाती है और उसके बच्चे असहाय हो जाते हैं।किसान एक ऐसा है जो खेती के नाम पर जुआ खेलता है और जीतने पर उसका घर अनाज से भर जाता है।किसान जब खेती रूपी जुए में हार जाता है तो बर्बाद होकर दाने दाने का मोहताज हो जाता है और उसकी लागत पूँजी भी वापस नहीं लौट पाती है।अबतक किसानों की उन्हीं फसलों का बीमा होता था जो बैंक से कर्ज लेकर तैयार की जाती हैं।बीमा तो होता था लेकिन फसल नष्ट होने पर बीमित राशि का भुगतान उसे नहीं दिया जाता था।केन्द्र सरकार द्वारा किसानों के लिये बनाई गयी नई फसल बीमा योजना अब तक धरातल पर अमली जामा नहीं पहन सकी है।किसान जब लगातार दैवीय प्रकोप का शिकार हो जाता है तो उसकी कमर टूट जाती है और बच्चों का पालन पोषण करना दूर की बात है वह अपने कर्ज की अदायगी नहीं कर पाता है।एक समय ऐसा भी आ जाता है जबकि उसे मजबूरी में आत्महत्या कर लेनी पड़ती है।आजकल खेती करना आसान नहीं है क्योंकि किसानों की खेती करने के लिये जो भी दवा पानी खाद बीज की जरूरत पड़ती है सभी के दाम आसमान छू रहे हैं।बची खुची कमी को जीएसटी ने पूरा कर दिया है।जीएसटी लागू होने के बाद खाद छोड़कर हर चीज के मूल्य घटने की जगह बढ़ गये है।एक तरफ तो किसान को भगवान कहा जाता है दूसरी तरफ उसी का खून चूसा जाता है।किसान ही एक ऐसा है जिसका शोषण थाना तहसील ब्लाक कचेहरी अस्पताल बस रेलवे आढ़त दूकानदारों हर जगह किया जाता है।किसान को अनाज छोड़कर बाकी सारा सामान उसे खरीदना पड़ता है।जब कोई किसान मर जाता है और हल्ला होने लगता है तब सरकार की मुआवजा देकर उनकी जुबान को बंद कर देती है।जबतक किसान जिन्दा रहता है तबतक उसकी चीख पुकार नक्कारखाने में तूती की आवाज बनी रहती है।सरकार की उपेक्षा और शोषण से कराह रहे किसानों की तरफ सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार निगाह उठाई है।अभी दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जेएस खेहर व न्यायमूर्ति डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने किसान के आत्महत्या करने के बाद मुआवजा दे देना किसानों की समस्या का समाधान नहीं है।किसानों के लिये बनाई गयी कल्याणकारी योजनाएँ कागज से बाहर निकलकर जमीन पर उतारकर कर्ज के प्रभाव को कम करने की जरूरत है।सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अदालत सरकार के खिलाफ नहीं है लेकिन सरकार को किसानों के कल्याण के लिये बनाई गयी योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिये पूरी ताकत लगा देनी चाहिए।अदालत के रूख का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उसने सरकार को इसके लिये छः माह का समय देकर सुनवाई को छः माह की तारीख लगाकर स्थगित कर दिया है।दूसरों का पेट भरने वाले किसान भगवान बेचारा हो गया है और उसकी खेती पर सेठ साहूकार नेता अधिकारी ठेकेदार सब कब्जा करते चले जा रहे हैं।समस्याओं से घिरा दैवीय प्रकोप व उपेक्षा का शिकार किसान मजबूरी में अपनी पुश्तैनी खेती को बेच रहा है।किसानों की दीन दशा पर तरस खाकर ऐतिहासिक पहल करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय बधाई का पात्र है।सरकार धर्म बनता है कि वह न्यायालय के निर्देश के अनुरूप योजनाओं का क्रियान्वयन सुनिश्चित कराकर किसानों को बेमौत मरने से बचाये।