किसानों के नाम पर उपद्रवियों का हिंसक प्रदर्शन
स्वतंत्र भारत के इतिहास में गणतंत्र दिवस की पहली किरकिरी
सरकार की सहनशीलता की परीक्षा ले रहे उपद्रवी
दिल्ली : 26 जनवरी गणतंत्र दिवस समारोह स्थल किसान ट्रैक्टर रैली के नाम पर उपद्रवियों द्वारा जो दृश्य उपस्थित किया गया उत्तर भारत के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ ।और गणतंत्र दिवस समारोह पर तो कभी भी नहीं दो महत्वपूर्ण बिंदु जो कि इस किसान रैली अथवा किसान आंदोलन की वास्तविक स्थिति को दर्शाते हैं। यह है पहला की क्या हुआ हरियाणा और पंजाब को छोड़कर शेष भारत के किसान भारत की किसान नीति से सहमत हैं। दूसरा यह की किसान द्वारा सुरक्षा कर्मियों पर हमला किया जाना संभव है? अब जबकि सरकार के द्वारा रैली का पथ निर्दिष्ट कर दिया गया था। तो किसानों को शांति पूर्वक प्रदर्शन करना चाहिए था। जबरन निषिद्ध स्थान की ओर भीड़ को मोड़ना सुरक्षाकर्मियों पर ट्रैक्टर चलाने की कोशिश करना डंडा तलवार और भाले लेकर युद्ध की स्थिति पैदा करना आंदोलन तो नहीं हो सकता हां अलबत्ता इसे विद्रोह की संज्ञा दे सकते हैं। बल्कि इन्हें बिद्रोही कहा जाना चाहिये अब सवाल यह उठता है, कि सरकार द्वारा दी गई किसान नीति में किसानों का अहित कितना हो रहा है ।किसान अपनी जमीनों से वंचित हो रहा है। या व्यापारी उसकी फसल खा रहा है। या सरकार किसानों के प्राण हर रही है। अगर इन तीनों में से कुछ भी नहीं हो रहा तो प्रश्न यह उठता है, कि सरकार को इस विद्रोह का जवाब किस भाषा में देना चाहिए।आब सोचने वाली बात यह है, कि विद्रोहियों को समझाया जा सकता है। या नहीं इतिहास तो कहता है। विद्रोहियों का सिर्फ ही सिर्फ दमन हो सकता है।आगे सरकार की नीति क्या कहती है। सरकार का कदम क्या होता है। यह देखने वाली बात है।लेकिन इतना तो तय है। कि ना तो यह किसान आंदोलन है, ना ही आंदोलनकारी किसान है, एक एक व्यक्ति की यदि सही से जांच की जाए तो शायद ही कोई किसान निकले ऐसी अवस्था में यह आंदोलनकारी उर्फ विद्रोही और उपद्रवी लोगों को कौन सी संज्ञा दी जाए देश की सुख समृद्धि और शांति बनाए रखने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए यह देखने वाली सोचने वाली बात है।
(एडीटर इन चीफ :सुशील निगम)