कालिंजर के किले का रहस्य…
कालिंजर के किले का रहस्य…
उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में स्थित कालिंजर बुंदेलखंड का ऐतिहासिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है। प्राचीन काल में यह जेजाकभुक्ति साम्राज्य के अधीन था। यहां का किला भारत के सबसे विशाल और अपराजेय किलों में एक माना जाता है। 9वीं से 15वीं शताब्दी तक यहां चंदेल शासकों का शासन था। चंदेल राजाओं के शासनकाल में कालिंजर पर महमूद गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक,शेर शाह सूरी और हुमांयू ने आक्रमण किए लेकिन जीतने में असफल रहे। अनेक प्रयासों के बावजूद मुगल कालिंजर के किले को जीत नहीं पाए। अन्तत: 1569 में अकबर ने यह किला जीता और अपने नवरत्नों में एक बीरबल को उपहारस्वरूप प्रदान किया। बीरबल क बाद यह किला बुंदेल राजा छत्रसाल के अधीन हो गया। छत्रसाल के बाद किले पर पन्ना के हरदेव शाह का अधिकार हो गया। 1812 में यह किला अंग्रेजों के नियंत्रण में आ गया। एक समय कालिंजर चारों ओर से ऊंची दीवार से घिरा हुआ था और इसमें चार प्रवेश द्वार थे। वर्तमान में कामता द्वार, पन्ना द्वार और रीवा द्वार नामक तीन प्रवेश द्वार ही शेष बचे हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह नगर पर्यटकों को बहुत पसंद आता है। पर्यटक यहां इतिहास से रूबरू होने के लिए नियमित रूप से आते रहते हैं।
धार्मिक लेख बताते हैं, कि प्रत्येक युग में इस स्थान के भिन्न नाम रहे:
सतयुग में कीर्तिनगर
त्रेतायुग में मध्यगढ़
द्वापरयुग में सिंहलगढ़ और
कलियुग में कालिंजर
मुख्य आकर्षण
कालिंजर किला
विंध्य की पहाड़ी पर 700 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह किला इतिहास के उतार-चढ़ावों का प्रत्यक्ष गवाह है। किले में आलमगीर दरवाजा, गणेश द्वार, चौबुरजी दरवाजा, बुद्ध भद्र दरवाजा, हनुमान द्वार, लाल दरवाजा और बारा दरवाजा नामक सात द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। किले के भीतर राजा महल और रानी महल नामक शानदार महल बने हुए हैं।
नीलकंठ मंदिर
इस मंदिर को चंदेल शासक परमार्दि देव ने बनवाया था। मंदिर में 18 भुजा वाले काल की विशाल प्रतिमा स्थापित है। काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता है। मंदिर के रास्ते पर भगवान शिव, काल भैरव, गणेश और हनुमान की प्रतिमाओं को पत्थर पर खूबसूरती से उकेरा गया है।
वनखंडेश्वर महादेव मंदिर
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर शिवसारी गंगा के उदगम स्थल पर स्थित है। शिवभक्तों का मंदिर में निरंतर आना-जाना लगा रहता है।
आवागमन
वायु मार्ग
कालिंजर का नजदीकी एयरपोर्ट खजुराहो विमानक्षेत्र है, जो लगभग 130 किलोमीटर की दूरी पर है। खजुराहो मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में है।
रेल मार्ग
अतर्रा कालिंजर का निकटतम रेलवे स्टेशन है। कालिंजर से अतर्रा की दूरी करीब 36 किलोमीटर की है। अतर्रा रेलवे स्टेशन झांसी-बांदा-इलाहाबाद रेल लाइन पर पड़ता है। चंबल एक्सप्रेस, महाकौशल एक्सप्रेस, बुंदेलखंड एक्सप्रेस आदि रेलगाड़ियों अतर्रा जाती हैं।
सड़क मार्ग
कालिंजर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के अनेक शहरों से सड़क मार्ग से जुड़ा हुआ है। चित्रकूट, बांदा, इलाहाबाद, सतना, छतरपुर आदि शहरों से यहां के नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं।
छठी शताब्दी और आज 2011…करीब पंद्रह सौ साल का वक़्त गुजर चुका है. इतने लंबे अरसे में तो यादों पर भी वक़्त की गर्द चढ़ जाती है. पर यहां जिस राज़ की बात की जा रही है, वो पंद्रह सौ साल बाद भी जिंदा है.
एक किला, जो पहाड़ों पर सीना ताने खड़ा है, इस किले में रहस्य है. सन्नाटे को चीरती घुंघरुओं की चीख़ है, तो कहीं तिलिस्मी चमत्कार. कई ख़ौफ़नाक हवेलियों और किले के क़िस्से अब तक सुने गए हैं. ऐसी कोई भी हवेली या किला नहीं था, जहां कोई रहता हो, इसलिए दास्तान कितनी सच है, कितनी झूठ, ये शक़ हमेशा बना रहता था. मगर इस किले में ‘वो’ रहती है और साथ में रहती है उसकी घुंघरुओं का आवाज़. जी हां…’वो’, जिसे मरे 1500 साल बीत चुके हैं.
कभी किसी महल जैसा रहा शानदार किला आज खंडहर में तब्दील हो गया है. मगर यहां की ज़िंदगी यहां के क़िरदारों के साथ आज भी ज़िंदा नज़र आती है. यहां के वीराने आज भी किसी के जिंदा होने का अहसास कराते हैं और जब दिन थककर सो जाता है, तो यहां रात की तनहाई अक्सर घुंघरुओं की छनकती आवाजों से टूट जाती है.
कालिंजर के इस दुर्ग में काली गुफाओं के कई रहस्यमई तिलिस्म हैं. रात होते ही इन गुफाओं में एक अजीब हलचल होती है. दिन के वक्त ये किला जितना खामोश नज़र आता है, रात के वक्त उतना ही खौफनाक. किले की 800 फुट की ऊंचाई पर पानी की धार नीचे से ऊपर की ओर बहती है.
बांदा में ज़मीन से 800 फुट ऊंची पहाड़ियों पर बना है कालिंजर का किला. कालिंजर दुर्ग को किसी ने चमत्कार कहा तो किसी ने अनोखा तिल्सिम करार दिया. बस यही वजह थी कि क़दम भी बेसाख्ता पहाड़ी की ओर बढ़ चले.
कालिंजर किले में दाखिल होते ही कई रहस्यमयी छोटी बड़ी गुफाएं दिखाई दीं. वो गुफाएं जिसका ओर तो है, लेकिन छोर का पता ही नहीं चलता. यानी गुफाएं शुरू तो होती हैं, लेकिन खत्म कहां जाकर होती हैं, यह कोई नहीं जानता.
गुफाओं में जगह जगह मकड़ी के जाले और घूरती बिल्लियों की निगाहे रोंगटे खड़े देती हैं, लेकिन इन सबके बावजूद खामोशी के साथ कदम गुफा की ओर बढ़ते गए.
इन अंधेरी गुफाओं के बीच ये टप टप गिरता पानी हमारे जिस्म में सिहरन पैदा कर रहा था. जैसे जैसे हमारे कदम गुफा में अंदर की ओर बढ रहे थे, रोमांच और भी बढता जा रहा था. इन अंधेरी गुफाओं में चमगादड़ों ने अपना आशियाना बना रखा है. आगे की जगह को पातालगंगा कहते है.
इस किले में एक दो नहीं बल्कि कई तरह की गुफाए बनी हुई हैं, जिनका इस्तेमाल उस काल में सीमाओं की हिफाजत के लिए होता था. किले के पश्चमी छोर पर ही एक और रहस्मयी गुफा थी. इस गुफा में घना अंधेरा था और इसके अंदर अजीब तरह की आवाजें आ रही थी.
कालिंजर के रहस्मयी किले में सात दरवाजे है. इन सात दरवाजों में एक दरवाजा ऐसा है, जो सिर्फ रात के सन्नाटे में खुलता है और यहां से निकला एक रास्ता रानीमहल ले जाता है जहां रात की खामोशी को घुंघरुओं की आवाज़ें तोड़ देती हैं और इन्ही घुंघरुओं की आवाज़ सुनने के लिए अब हमें शाम ढलने का का इंतज़ार करना था.
दरअसल कालिंजर किले में मौजूद रानी महल है. एक दौर था जब इस महल में हर रात महफिलें सजा करती थीं. कहने वाले कहते हैं कि आज 1500 साल बाद भी शाम ढलते ही एक नर्तकी के कदम यहां उसी तरह थिरकने लगते हैं. बस फर्क यह है कि अब इन घुंघरुओं की आवाज दिल बहलाती नहीं बल्कि दिल दहला जाती है.
घुंघरू की आवाज उस नर्तकी की है जिसका नाम पद्मावती था. गज़ब की खूबसूरत इस नर्तकी की जो भी एक झलक देख लेता वही उसका दीवाना बन बैठता. कहते हैं जब उसके घुंघरू से संगीत बहता तो चंदेल राजा उसमें बंधकर रह जाते. पद्मावती भगवान शिव की भक्त थी. लिहाजा खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन वो पूरी रात दिल खोल कर नाचती थी.
पद़माती अब नहीं है, पर हैरानी की बात ये है कि हज़ारों साल बाद आज भी ये किला पद्मावती के घुघरुओं की आवाज़ से आबाद है. खुद इतिहासकार भी इस सच को मानते हैं. रिसर्च के दौरान एक बार उन्हें देर रात इस महल में रुकना पड़ा और फिर रात की खामोशी में अचानक उन्हें वही घुंघरुओं की आवाज सुनाई देने लगी.
हजारों साल पुराने इस किले का इतिहास कुछ ऐसा है कि लोग फिर भी इन वीरान खंड्हरों की ओर खिंचे चले आते हैं. ये किला दरअसल चंदेल साम्रज्य की मिलकियत हुआ करता था. मगर किले के इतिहास से अलग लोगों को ज्यादा दिलचस्पी है किले में छुपे खजाने से. इस किले ने अब तक जितनी भी लड़ाइयां झेली वो सब खजाने को लेकर ही हुईं. अफवाहें हैं कि कालिंजर के किले में हीरे-जवाहरातों का एक बड़ा जखीरा मौजूद है.
पहाडी़ पर मौजूद इस किले में चित्रकारी और पत्थरों पर हुई नक्काशी देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस किले में काफी धन दौलत रही होगी. ऐतिहासिक सबूत बताते हैं कि कालिंजर के किला पर छठी शताब्दी से लेकर 15वी शताब्दी तक चंदेलों का शासन रहा. इस किले को गजनवी, कुतुबुद्दीन ऐबक और हुमायूं ने इनसे जीतना चाहा, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए.
इस चमत्कारी किले को इतिहास के हर युग में अलग अलग नाम से जाना गया, जिसका बाकायदा हिन्दू ग्रन्थों में जिक्र भी किया गया है. दरअसल कालिंजर का मतलब होता है काल को जर्जर करने वाला.
रोमांच और चमत्कार से हटकर कालिंजर का पौराणिक महत्व शिव के विषपान से भी है. समुद्र मंथन में मिले कालकूट के पान के बाद शिव ने इसी कालिंजर में विश्राम करके काल की गति को मात दी थी, इसलिए इस जगह का नाम कालिंजर पड़ा.
नीलकंठ मंदिर के ऊपर ही पहाड़ के अंदर एक और कुंड है, जिससे स्वर्गा कहा जाता है. इसे भी धर्म से जोड़ा जाता है. पहाड़ों पर सीना ताने खड़े इस कालिंजर के किले में कहीं रहस्य है, तो कही घुंघरुओं का खौफ़. कहीं तिलिस्मी चमत्कार है, तो कहीं अंधेरी गुफाओं का रोमांच. यह ही वजह है कि कला औऱ शिल्प की अदभुत मिसाल अभी तक बाइज़्ज़त कायम हैं. रही बात ख़ौफ़ की, तो इस किले की ख़ूबसूरती की रोशनी में ख़ौफ़ का साया भी धुंधला पड़ता ही नज़र आता है.
Thank you for giving us this historical information.