कानपुर पुलिस की नकदरी और अनदेखी से इतना क्षुब्ध हुआ अधेड़ कि पेट्रोल छिड़क आग लगाकर समाप्त की जीवन लीला।
कहीं कोई सुनवाई नहीं है वाकई इसलिए इसी तरह से परेशान है आम जनता लेकिन हर कोई आत्महत्या नहीं करता।
आत्मा और जमीर बेचकर काम कर रही है उत्तर प्रदेश पुलिस।
इंसानियत को दिखा रहे ठेंगा और दबंगों का दे रहे साथ उत्तर प्रदेश पुलिस के करस्मयी हाथ।
कानपुर : थाना बिधनू क्षेत्र गंगापुर प्लॉट नंबर 7 आराजी संख्या 576 -200 वर्ग गज पर भूस्वामी निर्माण करवा रहा था।जिसे जितेंद्र दीक्षित और घनश्याम सिंह गौर नें जाकर रोका घनश्याम का कहना है, कि यह प्लाट मेरा है, जितेंद्र दीक्षित ने बेचा है, भूस्वामी का आरोप था कि जितेंद्र दीक्षित नें फर्जी तरीके से उसके प्लाट को घनश्याम सिंह गौर को बेच दिया, इस बात की शिकायत जब पीड़ित ने पुलिस से की तो उसे पुलिस से अपेक्षित कार्यवाही नहीं प्राप्त हुई दबंगों ने अपना कहर जारी रखा जिससे बुरी तरह क्षुब्ध भूस्वामी ने आज सरेआम पेट्रोल डालकर आग लगा ली किसी तरह प्रत्यक्षदर्शियों ने आग को बुझाया पुलिस को बुलाया पुलिस ने हैलट में उसे भर्ती कराया जहां उसने अंतिम सांस ले ली।
अब यक्ष प्रश्न यह उठता है कि यदि पीड़ित व्यक्ति को न्याय देने की दिलाने की सोची जाए तो मुकदमा किस पर चलेगा ? क्योंकि वास्तविक रूप में दोषी तो पुलिस है,और अप्रत्यक्ष रूप से फर्जीवाड़ा कर जमीन बेचने वाला जितेंद्र दीक्षित लेकिन वास्तविक सजा का हकदार कौन उस निर्दोष व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाने वाला आखिर कौन? इसका निर्णय कौन और कैसे करेगा!
यह कोई पहला केस नहीं है, लॉकडाउन के समय से जब से पुलिस ने विकास दुबे की गाड़ी पलटाई है,तब से कानपुर पुलिस रिक्शा, स्कूटी, साइकिल, मोटरसाइकिल और पैदल सब कुछ पलटा ही रही है बिल्कुल अनियंत्रित हो गई है पुलिस किसी भी सज्जन आम नागरिक की बात सुनना पसंद ही नहीं करती एक नहीं सैकड़ों केस ऐसे बिखरे पड़े हैं, बस अंतर इतना है यह व्यक्ति कुछ ज्यादा ही क्षुब्ध हो गया मतलब व्यक्ति को इतनी असहनीय वेदना प्रशासन की ओर से मिली कि उसने इस शासकीय समाज में जीवित रहना उचित नहीं समझा और खुद पर पेट्रोल डाल आग लगा ली शर्म आनी चाहिए न्याय प्रशासन शासन और कानून के ठेकेदारों को जिन्होंने आम जनता की सुरक्षा के लिए उसकी जान माल की सुरक्षा के लिए ये नियम कानून बनाए।
इन पर काम करने का अधिकार कुछ ऐसे लोगों के हाथ में दिया जो पूरी तरह से अमानवीय कृत्यों में लिप्त हैं, स्वयं का और सरकार का सम्मान खो चुके हैं।
कोई भी काण्ड ले लीजिए आप गोरखपुर में मनीष हत्याकांड हो या विकास दुबे द्वारा किया गया पुलिस पर हमला क्या यह सब घटनाएं पुलिस की छवि को धूमिल नहीं करती है, आखिरकार इतनी अराजकता कैसे कौन करेगा इस पर नियंत्रण। लखीमपुर और छत्तीसगढ़ जैसी घटनाओं की शुरुआत को क्या कहा जाए सरेआम जघन्य अपराध करने पर लोग आमादा हैं, लेकिन कानून के पास इसकी कोई काट नहीं कोई ऐसा उपचार नहीं कि भविष्य में ऐसी जघन्य घटनाओं की पुनरावृति के बारे में सोचने से ही अपराधियों के रोम रोम कांप उठे सब खेल है, आपसी मेल है, और रुपैये की रेलम पेल है।
( एडीटर इन चीफ : सुशील निगम)