आईने लॉक डाउन
भरे अस्पताल, रोते डॉक्टर, थका स्टॉप, ऑक्सीजन की किल्लत, दवाओं की मारामारी, वैक्सीन की कालाबाजारी, आदमी की शैतानी सोच और जलते श्मशान घाट दहशत का माहौल——–
भारत देश की यथा स्थिति यह है पूर्व में दो नामचीन साहित्यकार भारत दुर्दशा नाम से दो अलग-अलग किताबें लिख चुके हैं क्या तीसरी भारत दुर्दशा के लेखन का यह उचित समय है?
शायद ऐसे ही हालात रहे होंगे जो लेखकों ने अपने अंतर्मन की पीड़ा भारत दुर्दशा के बिंदु तले शब्दों के माध्यम से कागज पर उड़ेल दी होगी।
आज जब भारत का प्रत्येक नागरिक भयाक्रांत है ऐसे में समाज का अराजक हो जाना अर्थात प्रत्येक व्यक्ति सामने उपस्थित होने वाले अवसर को कई गुना करके भुना रहा है समझ नहीं आता जब किसी की जिंदगी का भरोसा ही नहीं है तो इस प्रकार अवसर का लाभ उठाने वाले शैतान इतनी सी बात नहीं समझते कि मेरे बाद यह कालिख क्या होगा? अच्छा मजे की बात तो यह है कि समाज का प्रत्येक वर्ग चाहे वो किसी चिकित्सकीय संभाग से जुड़ा हो शासन-प्रशासन संभाग से जुड़ा हो किसी भी श्रेणी का कर्मचारी हो अब चाहे वह मानवीय अंगों का खेल हो या सब कुछ बंद करके शराब के ठेके खोलने का खेल हो या फिर पश्चिम बंगाल जैसी परिस्थितियों में अपनी जान बचाने के लिए जद्दोजहद करते व पलायन करते हुए हिंदुओं को उनके हाल पर छोड़ देने का खेल हो या कमजोर जनता को पुलिस द्वारा त्रस्त करने का खेल हो या फिर पत्रकारों को फर्जी मुकदमों में फसा कर बदनाम करने का खेल हो जैसे कल पनकी थाना पुलिस द्वारा भारत A2Z न्यूज चैनल के एम डी और उनके रिपोर्टरों के साथ हुआ फर्जी खेल हो इन सारे खेलों में सिर्फ एक बात नजर आती है कि पूरे सिस्टम में सरकार एवं सरकारी तंत्र का कहीं कोई नियंत्रण नहीं है सरकार रूपी रथ के सारे घोड़े बेलगाम हो गए और अपनी ढपली अपना राग छेड़े हुए हैं,उधर व्यापारी जो सरकार का महामारी के मद्देनजर साथ देने की सोच कर अपने व्यापार को बंद करके बैठ गया सरकार ने दारू के अड्डे खुलवा कर उस व्यापारी के मस्तिष्क में नफरत का कीड़ा बैठा दिया नहीं समझ आता कि आखिरकार इतनी किंकर्तव्यविमूढता कैसे आ गई वैसे चल सब पहले से ही रहा है लोग नहीं समझ पाते कि गुटखा बंद हो करके फिर कैसे चल जाता है पॉलिथीन बंद हो करके फिर कैसे बनने लगती है ऐसे बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं जो आपकी क्या हमारी समझ में नहीं आती समझ में आता है तो बस खेल और वर्तमान में लॉकडाउन भी समझ में आ रहा है एक——-
(एडीटर इन चीफ : सुशील निगम)