अब धोखाधड़ी और फ्राड करने वालों की मौज ही मौज।
उत्तर प्रदेश कानपुर पुलिस नें दे रखी हैं चार सौ बीसी करने की पूरी आजादी ।
आठ महीने तक पीड़ित जुही पुलिस एसीपी और डीसीपी की चौखट पर दस्तक देता रहा लेकिन मैग्मा फिनकॉर्प कम्पनी पर नही दर्ज हुई एफआईआर।
पीड़ित 156/3 के तहत पहुंचा न्यायालय की शरण में ,अब आगे भगवान जाने।
कानपुर : आखिर वो कौन सी मजबूरी हैं, कानपुर कमिश्नरेट पुलिस को लगभग नौ माह बीत गए लेकिन पीड़ित पत्रकार डॉ. आर्यप्रकाश मिश्रा के साथ फाइनेंस कंपनी मैग्मा फिनकॉर्प लि. द्वारा लोन लेने के लिए दिये गए प्रपत्रों व ब्लैंक चेको का दुरुपयोग कर की गई धोखाधड़ी और फ्राड करने की तहरीर पर FIR दर्ज नही कर रही जुही थाना पुलिस ।पीड़ित से विवेचना अधिकारी द्वारा मांगे गए सभी साक्ष्य देने के बाद भी नही हुई कोई कार्यवाही। कभी विवेचना अधिकारी तो कभी ACP तो कभी DCP रवीना त्यागी के चक्कर पे चक्कर लगा रहा फरियादी ,लेकिन सुनने वाला कोई नही ।सुनना दूर की बात फरियादी को डीसीपी साहिबा के दफ्तर के बाहर खड़े पहरेदार पीआरओ मिलने ही नही देते और खुद ही डीसीपी बनकर एक दो फोन घुमा कार्यवाही होने की दिलासा देकर कर देते चलता। और उससे भी गजब की बात तो यह कि जब पीड़ित कानून के रखवालों के चक्कर लगा लगा कर थक गया तो 156/3 के तहत न्यायालय में न्याय की अर्जी लगाई तो फिर न्यायालय नें भी भेज दिया नौबस्ता पुलिस के पास। नौबस्ता पुलिस नें न जांच की और न ही कोई कार्यवाही। बेचारे पीड़ित को चौकी में बुला कर बताया कि ये मामला मेरे थाने का नहीं हैं, जबकि डीसीपी साऊथ रवीना त्यागी नें पीड़ित आर्यप्रकाश मिश्रा से तीन दिन का समय मांगा था कार्यवाही करने का फिर ऐसा क्या हो गया जो डीसीपी महोदया नही कर पा रही कोई कार्यवाही?
अब माननीय योगी जी ही बताए कि पीड़ित किसके पास जाए और किस्से अपना दुखड़ा रोय? और किससे मामला दर्ज कराए जब जांच करने वाली भी पुलिस, न्यायालय को रिपोर्ट देने वाली भी पुलिस ,और न्याय दिलाने वाली भी पुलिस, तो क्या अब भगवान भरोसे चलेगी कानून व्यवस्था ?
(एडीटर इन चीफ : सुशील निगम)