अनियंत्रित निजी व्यापार प्रणाली ने तोड़ी आम आदमी की कमर
अनियंत्रित निजी व्यापार प्रणाली ने तोड़ी आम आदमी की कमर
>सरकार का दखल सिर्फ टैक्स तक
>मनमानी चाल से चलती बाजार
>मानवता के लिए भी हानिकारक
व्यापारिक प्रणाली में बाजार का सिस्टम पिछले कुछ महीनों में अपने असली चेहरे में दिखाई पड़ा हालांकि बाजार पर अनियंत्रण की अवस्था प्रमुख रूप से सरकारी तंत्र की असफलता का प्रतीक है, क्योंकि सरकार का संबंध निजी व्यापारिक सिस्टम में केवल टैक्स तक ही सीमित है,उत्पाद के कच्चे माल की कीमत,उत्पाद पर लागत एवं उसका विक्रय मूल कितना होना चाहिए यह तय करने वाला कोई नहीं और ना ही बाजार में उत्पादों की कीमतों पर नजर रखने के लिए सतर्कता विभाग का कोई गठन ही सामने आता है, जैसे पिछले कुछ वर्षों में प्राइवेट स्कूलों का हाल किसी से छुपा नहीं है, हाई-फाई फीस के खर्चे और उस पर छोटी-छोटी किताबों का बहुत बड़ा बड़ा मूल्य जिसमें आम आदमी की हड्डियों में कड़कड़ाहट पैदा कर दी है। जाहिर है, कि हर माता पिता अपने बच्चे को अच्छे स्कूल में पढ़ाना चाहेगा और इसके लिए खर्च होने वाले पूरे धन का इंतजाम भी करेगा किसी भी तरह से पैसा कमाने के लिए बाध्य एक आम नागरिक समस्त मानवीय मूल्यों को ताक पर रखकर केवल और केवल पैसे के लिए कुछ भी करने को तैयार रहेगा इस अवस्था में अपराध भी जन्म लेता है।और जाने अनजाने सभी चोर बन जाते हैं,जनता ने पूरे समाज को व्यवस्थित करने के लिए लोकतांत्रिक प्रणाली से सरकार नाम की संस्था को पूरे अधिकार दिए हैं,ताकि वह आम नागरिक की छोटी सी छोटी सभी बातों का न्याय पूर्वक निर्वाह कर सके और जनता भी खुली हवा में सांस ले सके लेकिन इसके लिए सरकार को बहुत गंभीरता से सोचना होगा किस तरह से वह निजी व्यवसायिक संस्थानों और उनके आय-व्यय तथा उत्पादों के विक्रय मूल्य पर नियंत्रण बिठाकर आय और व्यय के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सके हम आए दिन बहुत सारी घटनाओं से वाकिफ होते हैं। जिनमें रुग्ण आर्थिक आवंटन के कारण आम नागरिकों के द्वारा हत्या और आत्महत्या जैसे प्रयास किए जाते हैं, लेकिन वास्तविकता में ऐसी घटनाओं का सीधा संबंध सरकार के आर्थिक चिंतक टीम से होता है, पिछले दिनों लॉकडाउन की समस्या ने एक पहाड़ जैसी समस्या को सामने ला खड़ा किया पूरे देश के अंतर्गत श्रमिकों के हाथों के द्वारा करोड़पति और अरबपति बनने वाले निजी व्यवसाय के मालिकों ने अपने उन्हीं श्रमिकों को चिलचिलाती धूप में तारकोल की सड़क पर मरने के लिए असहाय छोड़ दिया बहुत ही घटनाएं दुर्घटनाएं हुई जिनमें हमने देखा मजदूरों और उनके परिवारी जनों को जान से हाथ धोना पड़ा वास्तविकता में एक पल के लिए अगर हम सोचे तो सही मायने में इनका जिम्मेदार कौन था क्या सरकारी तंत्र एक घिसी पिटी लीक पर ही काम करता रहेगा।बहुत कुछ ऐसा है,जिसे हम रोज खुली आंखों से देखते हैं, लेकिन उसे समझ कर उसे परिवर्तित करने की मांग नहीं करते बहुत सी ऐसी चीजें प्रचलन में है, जो किसी भी देश के आम नागरिक के लिए प्राणघातक है, लेकिन फिर भी सरकारी अमला उन पर संज्ञान रखते हुए कार्यवाही ना करने को बंद रहता है, ऐसा क्यों कहीं ना कहीं सरकार के साथ-साथ हम आम नागरिक भी इनके लिए जिम्मेदार हैं, हम वक्त के दौर में आगे भागने की कोशिश तो करते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं, कि हमारी सीमा वहां समाप्त हो जाती है, जहां दूसरे व्यक्ति की नाक शुरू होती है, लचर कानून व्यवस्था एवं भ्रष्ट प्रशासन के रहते आम जनता भी चोर ही रहेगी कोई भी व्यक्ति अपराधिक एहसास से बच नहीं सकता दूसरे शब्दों में यदि जनता चोर है, तो प्रशासन भी भ्रष्ट ही रहेगा शुरुआत कहां से और कैसे करनी है, यह सिर्फ वही सोच सकता है, जिसके नियंत्रण में व्यवस्था की जिम्मेदारी होती है।
बाकी आप सभी लोग समझदार हैं।
एडीटर इन चीफ :- सुशील कुमार निगम